देश सेवकों के संस्मरण | Desh Sevakon Ke Sansmaran

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Desh Sevakon Ke Sansmaran by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घो अम्मा १७ को ऐसी अवल वर कि जिससे ये एकता की जरूरत को गे समसे मौर रहम करके स्वराज्य देखने के लिए मसे जिंदा रहनें डे ।'' इस वहादर और भद्र आत्मा की यादगार को बनाये बे रम्पन की सबसे अच्छी रीति यही ह कि हम सर्वे-सामान्य के प्रति उनके उत्साह भौर उमग का अनकरण कर । हिंदधर्म भी थिना स्वराज्य के उतना ही मं है जितना कि इस्लाम । परमात्मा कर कि और मुसलमानों को उस प्रारभिक बात की कदर करने की वी अम्मा-जसी वृद्धि द। परमात्मा उनकी आत्मा को बाति जोर अली भाइयों को उनके सौपे कार्य को जारी रखने की दे । वी अम्मा की मत्य की रात के उस गभीर और प्रभावझारो दव्य का वर्णन किये विना मे नहीं रह सकता । उस समय मय उनक पास ही रहने का सद्भाग्य प्राप्त हुआ था । यह सनते हो कि अब वह अपने जीवन की अतिम सासे हें मे और सरोजिनीदेवी वहा दोडे गये । उनके कुटब के कितने ही लोग आस-पास जमा थे । उनके डाक्टर और हितचितफ डा० असारी भी मौजद थे । वहा रोने को आवाज नहीं सनाउ देती थी, अलवत्त मी ० महम्मदअली के गालों पर से आस जरूर टपक रहे थे । बउे भाई नें वडी कठिनाई से अपने घोकावेग को रोफ रखा था । हा, उनके चेहरे पर एक असाधारण र गभीरता अलवत्ते थी । सच लोग अलला का नामोच्चार कर रहें थे । एक सज्जन बत समय की प्राथना गा रहे थे । 'कामरंड प्र” वी अम्मा के बमर के उतना पास है कि आवाज सुनाई दे सकती है । परतु एक मिनिट के लिए वहा के काम में गडवड नहीं हई और न मौलाना ने ही. अपने सपादकीय कर्तव्यों मे रुकावट आनें दी । सावंजनिक काम तो कोई भी मुल्तवी नहीं किया गया । मौलाना ने तो सपने तक में न सोचा था कि में अपना रामजस फादेज जाना मल्तवी करूगा | वह एक सच्चे सिपाही की तरह मजपफरनगर के हिंदुओ को दिये गये निद्चित समय पर उनने मिठ, हालाफि




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