सत्याग्रह - मीमांसा | Satyagraha Mimansa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रंगनाथ दिवाकर - Rangnath Diwakar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गे
{ पंदह 3
रही है । इसमें कितने ही बौद्ध और जेन पंडितों का भी समावेश होता
हे । प्रत्येक यह सिद्ध करके दिखाता प्रतीत होता है कि उसके पन््थ में
हिंसा का सबंधा निपेघ नहीं है । वल्कि उन पर्न्थोँ ने तो यह भी
स्वीकार किया है कि कुछ प्र्तंगों के ऊपर हिंसा पवित्र श्रौर धाक
कर्तव्य हो जाता दे । ,
इस पांडित्यपूर्ण चर्चा को सुनकर तो ऐसे साधारण व्यक्ति भी
भ्रम में पढ़ जाते हैं जिनको पहिले गांधीजी के उपदेशों के विपय में
कोई शंका नहीं थी ।
[+
ऐसी स्थिति मं सस्याप्रहु-तच के सम्बन्ध में छिस प्रकार विचार
करना ठीक होगा ?
यहां में अपने विचार रखता हूं । मेरे विचारों की उत्क्ान्ति में
श्रनेक धासिक श्र तात्विक संस्कारों का हाथ है। लेकिन राज मेरी
निष्टा किसी विशेष घर्मपंथ अथवा दर्शन से चिपटी हुई नहीं है श्रौर
न वह किंसी भी शाख के शव्द्-प्रमाण ही मानती दे । लेकिन कुछ
इतिदास-प्रसिद्ध सत्याध्रही, कुछ मेरे श्रपने परिचित सत्याग्रह श्रौर मेरा
श्रपना थोडा-वहुत श्रजुभव, इन सवके श्राधार पर नै यह द्ढनेका
प्रयत्न करू गा क्रं सत्याग्रही की निष्ठ के मूल में किस प्रकार का धर्यं
म
|
प्रौर चल काम करता है
इससे में इस निणंय पर पहुँचा हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में
दो विशेष प्रकार के वलों के वीज रहते हैं । में एक को नीतिवल श्र
दूसरे को तेजोवल कहूँगा |
इनमें नीतिवल का स्वरूप इस प्रकार है--मनुप्य को तरह-तरह
के ऐहिक लाभ तथा मानसिक एवं देन्दिक सुखो की इच्छा रटती हे
प्नौर उन्हे प्रा करने कै लिट वह रात-डिन प्रयत्न किया करता दै ।
लेकिन उसे श्रपने पर संयम रखने की एक देसी शक्ति प्रप्त रहती हे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...