मैं महात्मा नही हूँ | Mai Mahatma Nahi Hu

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Mai Mahatma Nahi Hu by रंगनाथ दिवाकर - Rangnath Diwakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्व बा कै एप मै बिस्तरा इसीपर करना यरवदा-जेल मे रात को जब भी बारिश श्राती तब खाट उठाकर बरामदे मे लाना भारी पडता था । इसलिए गांधीजी ने मेजर से हल्की खाट मांगी । उसने कहा नारियल की रस्सी की चारपाई है। क्या उससे काम चलेगा ? श्राप कहे तो नारियल की रस्सी निकालकर उसे निवाड़ से बुन दिया जाय । शाम को खाट झ्राई। गांधीजी बोले यह ठीक है। इस पर निवाड़ चढाने की कोई जरूरत नही । मेरा बिस्तरा झाज इसीपर करना । वल्लभभाई ने कहा क्या कहा ? इसपर भी सोते हैं ? गद्दे मे नारियल के बाल क्या कम है जो नारियल की रस्सी पर सोना है बस चारो कोनो पर नारियल बांधना बाकी है । ऐसी बदशगुन खाट से काम न चलेगा । इसमें कल निवाड़ भरवा दूगा । गाधीजी बोले नही वल्लभभाई निवाड़ मे धूल भर जाती है। वह घुलती नहीं । इसपर पानी उडेला तो साफ । वल्लभभाई ने उत्तर दिया निवाड़ घोबी को दी तो दूसरे दिन घुलकर झाई । गाघीजी बोले मगर यह रस्सी निकालनी नहीं पड़ती यही घुल जाती है ।




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