ऋषिमंडलयंत्रपूजा | Rishimandalyantrapuja
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५)
अथ-उसके बाद सोलह कोठोंवाला एक गोछाकार खेंचना चाहिये ।
उन सोरृह कोटोमें चतुर पुरुषोको एेसा लिखना योग्य है--उर# हीं
भावनेन्द्राय। १ । 3 ही व्यततरेन्राय । २। ॐ हीं ज्योतिष्केन्द्राय । ३।
ॐ हीं कस्येन्द्राय £ ॐ हीं श्रुतावधिम्यो नमः ५ ॐ हीं देश्चावधि-
भ्योनमः ६ ॐ हीं परमावधिम्यो नमः ७ ॐ हीं सवोवधिम्यो
नमः ८ ॐ हौ बुद्धिछद्धिप्रप्तेम्यो नमः ९ ॐ हों सर्वोंधघधिक्रुद्धि-
प्राततिभ्यो नमः १० आओ हीं अन॑तबलरदिप्रापतेभ्यो नमः ११ ओंदीं
तप्तद्धिप्रात्तेभ्यो नमः १२ दही रसद्धिप्रापतेभ्यो नमः १३२ आओ हीं
विक्रियर््धिप्रातेम्यो नमः १४ ओ ढीं क्षेत्रद्धिप्राह्ेम्यो नम: १५ ओ हीं
अक्षीणमहानसध्धिप्रापतेम्यो नमः ॥ १६ ॥ १४॥
ततश्च वरय; कायः चतुर्विशतिकोष्टकः ।
तत्र ढेख्याश्र कतब्याश्रतुर्विद्तिदेवता: ॥। १५ ॥।
अथे--उसके पीछे चौवीस कोठोवाला गोलाकार बनावे उन
कोटाम चौवीस जैन दासन देवताको स्च । ' तद्यथा वो एते है-ओं
हींश्रियै १ हीं दीद्ये २ॐ हीं तये ३ ॐ हीं लक्ष्म्यै ४ उही
गौर्ये ५ ॐ हीं चडिकायं ६ ॐ हीं सरस्वत्यै ७ ॐ हीं जयायै <
ॐ हीं अंबिकायै ९ उॐ ही विजयायै १० ॐ हीं हिनाये ११ उ हीं
सजितये १२ ॐ हीं नित्यायै १३ ॐ हीं मदद्ववायै १४अॐ हीं
कामागाये १५ ॐ हीं कामवाणयि १६ ॐ हीं सानंदायै १७ ॐ
हीं नंदिमालिन्ये १८ ॐ हीं मायायै १९ आं दीं मायाषिन्यै २० आं
हीं रौद्ये २१ भो ही कलाये २९ आओ हीं काल्यै२३ ओं ही कलि-
प्रियायै २४ ॥ १९॥
ततो मायाज्निकोणे च देयं पत्रमनोहरं ।
सवेविघ्रापदं चेतद्धीकारं भांतसंयुजं ॥ १६ ॥
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