ऋषिमंडलयंत्रपूजा | Rishimandalyantrapuja

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Rishimandalyantrapuja by पंडित मनोहरलाल शास्त्री - Pandit Manoharlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) अथ-उसके बाद सोलह कोठोंवाला एक गोछाकार खेंचना चाहिये । उन सोरृह कोटोमें चतुर पुरुषोको एेसा लिखना योग्य है--उर# हीं भावनेन्द्राय। १ । 3 ही व्यततरेन्राय । २। ॐ हीं ज्योतिष्केन्द्राय । ३। ॐ हीं कस्येन्द्राय £ ॐ हीं श्रुतावधिम्यो नमः ५ ॐ हीं देश्चावधि- भ्योनमः ६ ॐ हीं परमावधिम्यो नमः ७ ॐ हीं सवोवधिम्यो नमः ८ ॐ हौ बुद्धिछद्धिप्रप्तेम्यो नमः ९ ॐ हों सर्वोंधघधिक्रुद्धि- प्राततिभ्यो नमः १० आओ हीं अन॑तबलरदिप्रापतेभ्यो नमः ११ ओंदीं तप्तद्धिप्रात्तेभ्यो नमः १२ दही रसद्धिप्रापतेभ्यो नमः १३२ आओ हीं विक्रियर््धिप्रातेम्यो नमः १४ ओ ढीं क्षेत्रद्धिप्राह्ेम्यो नम: १५ ओ हीं अक्षीणमहानसध्धिप्रापतेम्यो नमः ॥ १६ ॥ १४॥ ततश्च वरय; कायः चतुर्विशतिकोष्टकः । तत्र ढेख्याश्र कतब्याश्रतुर्विद्तिदेवता: ॥। १५ ॥। अथे--उसके पीछे चौवीस कोठोवाला गोलाकार बनावे उन कोटाम चौवीस जैन दासन देवताको स्च । ' तद्यथा वो एते है-ओं हींश्रियै १ हीं दीद्ये २ॐ हीं तये ३ ॐ हीं लक्ष्म्यै ४ उही गौर्ये ५ ॐ हीं चडिकायं ६ ॐ हीं सरस्वत्यै ७ ॐ हीं जयायै < ॐ हीं अंबिकायै ९ उॐ ही विजयायै १० ॐ हीं हिनाये ११ उ हीं सजितये १२ ॐ हीं नित्यायै १३ ॐ हीं मदद्ववायै १४अॐ हीं कामागाये १५ ॐ हीं कामवाणयि १६ ॐ हीं सानंदायै १७ ॐ हीं नंदिमालिन्ये १८ ॐ हीं मायायै १९ आं दीं मायाषिन्यै २० आं हीं रौद्ये २१ भो ही कलाये २९ आओ हीं काल्यै२३ ओं ही कलि- प्रियायै २४ ॥ १९॥ ततो मायाज्निकोणे च देयं पत्रमनोहरं । सवेविघ्रापदं चेतद्धीकारं भांतसंयुजं ॥ १६ ॥




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