वैदिक विज्ञान | Vaidik Vigyan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.14 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
नाम→दयानन्द भार्गव
जन्म→२२ फरवरी, १९३७
शिक्षा→बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी) , एम. ए. (संस्कृत ) , पी.एच.डी
पद →
⇒अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, रामजस कॉलेज, दिल्ली
⇒रीडर, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
⇒प्राचार्य, केन्द्रिय संस्कृत विद्यापीठ, जम्मू तथा इलाहाबाद
⇒आचार्य एवम् अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
⇒आचार्य एवम् अध्यक्ष, जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्मदर्शन विभाग, जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूँ
⇒प्रोफेसर एमेरेटिस , जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूँ
⇒विजिटिंग प्रोफेसर, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली
⇒सम्प्रति अध्यक्ष, वेदवाचस्पति पंड़ित मधुसूदन ओझा
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चंद विज्ञान तथा आधुनिक विज्ञान १ अददशन की उन कील ननसपमणनण हमार मस्तिष्क का याँया भाग पूरापररूप म विश्लपण करन मे अधिक कुशल ह । इसका काम सूचनाआ का सरल रखाकार क्रपिक रूप म व्यवस्थित करना ह । मस्तिष्क का दाहिना भाग जा बॉय भाग का नियत्रित करता ह मुख्यत समग्रता से विवार करता ह जा ऊि सश्लपण क लिए अधिक उपयुक्त ह और जा सूचनाआ का फला कर युगपद् दखता हा 5.2 विश्लेपणपरक विचार आर ममप्रतापरक अन्नर्द्टि क बाय समत्वय ही हमें परिपू्णता तक ल जाता ₹ । विर्लंपण पर वल दने वाला आधुनिकविज्ञान इस बात को समयन लगा है थि विश्लपण का प्रक्रिया में जय हम विभद विभाजन तुलना नाप हाल और वर्गीकरण करत ₹ त्ता हम पदार्थ के समम्न पक्षों को न लक्र कुछ चुने हुए पक्षों का ही लत हैं । परिणामत पदाथ का स्वरूप असगत और परस्पर विराधा प्रतीन हाता है । यह असगति आर विरोध तभी दुर हो सकता है जय अनईछि और विश्लपण क बीच सामजस्य स्थापित किया जा सक॑ यद्यपि यह काय सरल नहीं हे ॥ ६- क्वान्टम सिद्धान्त त्रा एकत्व 61 ठननीसवीं शताब्दी के परमाणुवाद का स्थान आज क्वाण्टम सिद्धान्त ने ले लिया है । परमाणुवाद का आधार यह था कि यदि हम पदार्थ को खडित करते चले जायें तो हर्म पदार्थ का एक एसा खण्ड प्राण होगा जिसका आग विभाजन नहीं हो सकता । पदार्थ का यही अविभाज्य लघुतम खण्ड परमाणु है और इन्हीं परमाणुओं को जांड जोडकर विश्व का निर्माण हुआ है । इसके विपरात क्वाण्टम सिद्धान ने यह बहाया कि सम्पूर्ण विश्व एक अखण्ड इकाई है । ऐसी स्थिति में अनक के विशिलष्ट शान के साथ एक का सश्लिप्ट ज्ञान भी आवश्यक हा गया और विज्ञान के साथ ज्ञान की अपरिहार्यवा भी उजागर हो गई । ७- विविधता मे एकता वाकु मन प्राण की त्रपुटी की सहभाविता 71 विविधता के बीच जो एकता है ठसे शतपथ में आत्मा शब्द द्वारा कहा गया है--अन्र हात सर्व एक भवस्ति तद॒ततू परमीय सर्वस्य यदयमात्मा इसी आत्मा की व्याख्या करते हुए शत्रपथ ब्राह्मण कहता है--अयमात्या वाद.मयो म्नॉपय प्राणमय । वाक् मन और प्राण दी त्रिपुरा ही आत्मा है । इस वाक् मन और प्राण वी त्रिपुटी का व्याख्यान शतपंथ ब्राह्मण में बहुत विस्तार स हुआहै-- यही आत्मा तीन तीन लाक ह 1 वाकू यह लोक ह मन अन्तरिक्ष आर प्राण चौ लोक ह 1 यही आत्मा तीन घद हैं 1 दाकू ऋग्वद ह मन यजुर्वद हैं प्राण सामवेद ह । दव पितर आर
User Reviews
siddhapboy
at 2019-05-10 08:39:52"बहुत प्रभावित हु "