वैदिक विज्ञान | Vaidik Vigyan

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Vaidik Vigyan by दयानन्द भार्गव - Dayanand Bhargav

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नाम→दयानन्द भार्गव
जन्म→२२ फरवरी, १९३७
शिक्षा→बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी) , एम. ए. (संस्कृत ) , पी.एच.डी

पद →
⇒अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, रामजस कॉलेज, दिल्ली
⇒रीडर, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
⇒प्राचार्य, केन्द्रिय संस्कृत विद्यापीठ, जम्मू तथा इलाहाबाद
⇒आचार्य एवम् अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
⇒आचार्य एवम् अध्यक्ष, जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्मदर्शन विभाग, जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूँ
⇒प्रोफेसर एमेरेटिस , जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूँ
⇒विजिटिंग प्रोफेसर, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली
⇒सम्प्रति अध्यक्ष, वेदवाचस्पति पंड़ित मधुसूदन ओझा

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चंद विज्ञान तथा आधुनिक विज्ञान १ अददशन की उन कील ननसपमणनण हमार मस्तिष्क का याँया भाग पूरापररूप म विश्लपण करन मे अधिक कुशल ह । इसका काम सूचनाआ का सरल रखाकार क्रपिक रूप म व्यवस्थित करना ह । मस्तिष्क का दाहिना भाग जा बॉय भाग का नियत्रित करता ह मुख्यत समग्रता से विवार करता ह जा ऊि सश्लपण क लिए अधिक उपयुक्त ह और जा सूचनाआ का फला कर युगपद्‌ दखता हा 5.2 विश्लेपणपरक विचार आर ममप्रतापरक अन्नर्द्टि क बाय समत्वय ही हमें परिपू्णता तक ल जाता ₹ । विर्लंपण पर वल दने वाला आधुनिकविज्ञान इस बात को समयन लगा है थि विश्लपण का प्रक्रिया में जय हम विभद विभाजन तुलना नाप हाल और वर्गीकरण करत ₹ त्ता हम पदार्थ के समम्न पक्षों को न लक्र कुछ चुने हुए पक्षों का ही लत हैं । परिणामत पदाथ का स्वरूप असगत और परस्पर विराधा प्रतीन हाता है । यह असगति आर विरोध तभी दुर हो सकता है जय अनईछि और विश्लपण क बीच सामजस्य स्थापित किया जा सक॑ यद्यपि यह काय सरल नहीं हे ॥ ६- क्वान्टम सिद्धान्त त्रा एकत्व 61 ठननीसवीं शताब्दी के परमाणुवाद का स्थान आज क्वाण्टम सिद्धान्त ने ले लिया है । परमाणुवाद का आधार यह था कि यदि हम पदार्थ को खडित करते चले जायें तो हर्म पदार्थ का एक एसा खण्ड प्राण होगा जिसका आग विभाजन नहीं हो सकता । पदार्थ का यही अविभाज्य लघुतम खण्ड परमाणु है और इन्हीं परमाणुओं को जांड जोडकर विश्व का निर्माण हुआ है । इसके विपरात क्वाण्टम सिद्धान ने यह बहाया कि सम्पूर्ण विश्व एक अखण्ड इकाई है । ऐसी स्थिति में अनक के विशिलष्ट शान के साथ एक का सश्लिप्ट ज्ञान भी आवश्यक हा गया और विज्ञान के साथ ज्ञान की अपरिहार्यवा भी उजागर हो गई । ७- विविधता मे एकता वाकु मन प्राण की त्रपुटी की सहभाविता 71 विविधता के बीच जो एकता है ठसे शतपथ में आत्मा शब्द द्वारा कहा गया है--अन्र हात सर्व एक भवस्ति तद॒ततू परमीय सर्वस्य यदयमात्मा इसी आत्मा की व्याख्या करते हुए शत्रपथ ब्राह्मण कहता है--अयमात्या वाद.मयो म्नॉपय प्राणमय । वाक्‌ मन और प्राण दी त्रिपुरा ही आत्मा है । इस वाक्‌ मन और प्राण वी त्रिपुटी का व्याख्यान शतपंथ ब्राह्मण में बहुत विस्तार स हुआहै-- यही आत्मा तीन तीन लाक ह 1 वाकू यह लोक ह मन अन्तरिक्ष आर प्राण चौ लोक ह 1 यही आत्मा तीन घद हैं 1 दाकू ऋग्वद ह मन यजुर्वद हैं प्राण सामवेद ह । दव पितर आर




User Reviews

  • siddhapboy

    at 2019-05-10 08:39:52
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "बहुत प्रभावित हु "
    NIce h
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