पीर नाबालिग़ | Pir Nabalig
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.92 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri
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कमलकिशोरी - Kamalkishori
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चतुग्सेन की कद्दानियाँ उसी नोक पर गिलिट फ्रेम का एक अदा सा चश्मा रक््खा था # बिखरे हुए रुखे रूचचड़ी वाल श्वागे के तीन दाँत गायब पाने से ब्राइर तक रगे हुए झोठ बदन पर एक साधारण चेक-डिजाइन की कमीज कमर में बहुत ढीला मेला पायजामा जिसको एक पायचा फटा हुआ पैरों में बिना ही मोजे के बहुत भारी शू सिनमें फ्रीतें चदारद आर बूल-गर इतनी कि साफ़ कहां जा सकता है कि फैक्टरी से निकलने के बाद उन्होंने पालिश की सूरव ही नहीं देखी दुबले-पतले कोई-छुटाक भर के चआदसी चेन ईस्ट थे नबालते थे न इठलाते थे न मचतते थे शकके बाद दूसरी बीड़ी जेव से न्काकते छोर फूंकते जा रहें थे । मुझे ८ डा क॑ तुइल हुआ। परिचय पूँछा ते एक दोस्त ने मुम्का कर सिफ इतना ही कहा-- आप पीर नावालिय हैं । दोस्त के च्योठ हो नहीं चाँखे मां मुखर रही थीं 1 मैंन उठते हुए कहा--त्र तो मुझे श्ञापका अदब करना सद्धिए । झैर मैंने जरा उठ कर आदाव-अजें किया । पीर नाबालिग बन कर भी न बने । उण्डे-ठण्डे सलाम झेकर उसी गर्मीरता से बीड़ियाँ फूकते रहे । मैं ध्यान से उनकी शोर घूर कर देखता रहा । एक दोस्त ने कड़ा-बपके पास कुछ शिकायत करने श्याप हैं | मैंने हैंसन हो कर कद्दा-शिकायत ? दोस्त के चेहरे पर शरारत की रेखाएं साफ़ दीख पढ़ रही शी। उससे नक़ली गस्मीरता से .कहा--जी हाँ शिकायत जापको सुनना होगा और सुनासिव जन्दोबस्त करना होगा । की श्
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