आत्मोत्सर्ग | Aatmotsarg
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दारिद्य द्रत। ११
ही कि नजन त 9 ०5 म ०० उन नह 1
त्यागसन्त कौ मदिमा ससस कर विखासिल्नने राज-
सिंडाखन छोड़ दिया था। शेश्वथं घौर दायो घोड़ों को छोड़
सरवे संन्यासो बने थे। उन्होंने देखा कि जो मेता बनना
पार--जो द्यो को उपदेश देना चा, ७से सवर प्ले
अपने साध दो वलि देनो पाछिये--भपने ऐश को दूसरोंके
हिति मी सगाकर ऽसे दारिद्धय-मन्न सिद करना चाहिये ।
रसशिये अपना राच्य घोर राज सिंहासन त्यागकर विश्वासिच
संन्यासी चने) उनक्त दारिद्य-मन्व सिद करते समय विश्व.
याप उठा था । संसारसें न सानूम कितने राजा 'होकर मर
गये, संसार न नहीं जानता, यदि विश्वामित्र मौ रजा
ठौ रहत तो उन्दः कौन पहदानना १ किन्तु राजञपिं विश्वामित्र
को नंखार जानता है--मप्ति सदित सिर कूकाता है ।
जिस दिन त्यागसस्त सिद्द था, उस दिन सारत भी उन्नत
घा-जिस दिन दरिद्रता से घृणा न थी तत्र भारत भी संसार:
कानेताथा। विन्तु जय से इसे घणा पुई, तभी से भारत
गिरने लगा है। ३ भारत-मन्तान! उस उम्रत _दिन को
लानेके लिये फिर उसी व्यागसन्त को सिद कर--फिर रसौ '
दारिट्राघ्रच को पालन कर | संपार को कोई शक्ति इस घ्रत
के पालने वालों के सामने नहीं टिक सकती । घनवल्त, एश्डिये-
वल्, जनरल, श्रादि कोई भो वल होःकिन्तु त्वागवलके सामने,
सवको सिर. भाकाना प्रड़ता है। संसार का इतिदांस त्याग
कर स ~~
यौ कधामात्र ई । जिसने त्याग खोक्तार किया, व्ह उन्नत बना
५८५० ९.० ७०५५५ ७०७
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