आनन्दमय जीवन | Aanandmay Jeevan

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Aanandmay Jeevan by डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आनन्दमय जीवन १७ स्वभावका व्यक्ति विकट जीवन-खितियोमि भी प्रसन्न-चिन्त रहता है । मुसकराहर उसके मानसिक संस्थानका एक अंश होता हे । मनःशान्ति; उद्यस् और सद्धावनाकी सनःसितियोको विकसित कीजिये । जिस मस्तिष्कमे गन्तिपूर्वंक उछसित सुद्रासे कार्य करनेका स्वमाव दै, वदं विष्रम परिखितियोमे मी आनन्दित रहं सकता है । जीवनमे उदारता बड़ी सुखमय मनःखिति हे । इसका विरोधी तत्व अर्थात्‌ संकुचितता मनुष्योको दवाने; सीमित करने और अहंवादी बनाने- वाला दुरु है | जो सुख दमे दूसरॉको देनेसे प्राप्त होता है; उसे कोई भुक्तभोगी ही अनुभव कर सकता हैं । देनेसे मन उदार बनता हैं और मंनितिक बौद्धिक: शारीरिक, आध्यास्मिक.-सभी प्रकारकी गक्तिरयोका विकास होता है । यह दान रुपये-पेंसे; श्रमः सहयोगः प्रेम आदि अनेक प्रकारका दो सकता है । यदि आपके पास धन दान देनेके लिये नहीं है; तो श्रम-दान कर दीजिये । श्रम-दान अर्थात्‌ अपने मन» डरीर) वचन; कर्म किसी भी प्रकारके श्रमद्वारा दुसरोकी सहायता कर दीजिये । इस उदारतासे आपकी गुस आध्यात्मिक शक्तिर्योका विकास होगा । उदारता मनुष्यके बड़प्पनका चिह्न है । जीवनमें सदुद्देश्यसे कार्यं करते चल्यि । यदि आपका उदेश्य पवित्र है तो गरीवीके जीवनम भी खुखः शान्ति ओर आनन्द है । “सब सुखी दो; सब स्वास्थ्य प्राप्त करें; सब कल्याण प्राप्त करें; सब उन्नति करते रहें”--ये ऐसी भावनाएँ: हैं जिन्हें सामने रखकर काय॑ करनेसे मनुष्य- को आन्तरिंक सुख-संतोप प्राप्त होता दै । आपके जीवनका उदृदेश्य आध्यात्मिक सौन्दर्यसे युक्त जीवन तथा शक्तिकी प्राप्ति होना चाहिये । यह उद्देदय सबसे ऊँचा और कल्याणकारी है । दूसरोके जीवनमे दिलचस्पी लिया कीजिये । स्वकेन्द्रित होनेसे मनुष्य दूसरोंका हानि-लाभ नहीं देख पाता; अपना-ही-अपना भला देखता है | आ० जी० २-- ५ (+ ~€.




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