आनन्दमय जीवन | Aanandmay Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आनन्दमय जीवन १७
स्वभावका व्यक्ति विकट जीवन-खितियोमि भी प्रसन्न-चिन्त रहता है ।
मुसकराहर उसके मानसिक संस्थानका एक अंश होता हे ।
मनःशान्ति; उद्यस् और सद्धावनाकी सनःसितियोको विकसित
कीजिये । जिस मस्तिष्कमे गन्तिपूर्वंक उछसित सुद्रासे कार्य करनेका
स्वमाव दै, वदं विष्रम परिखितियोमे मी आनन्दित रहं सकता है ।
जीवनमे उदारता बड़ी सुखमय मनःखिति हे । इसका विरोधी तत्व
अर्थात् संकुचितता मनुष्योको दवाने; सीमित करने और अहंवादी बनाने-
वाला दुरु है |
जो सुख दमे दूसरॉको देनेसे प्राप्त होता है; उसे कोई भुक्तभोगी ही
अनुभव कर सकता हैं । देनेसे मन उदार बनता हैं और मंनितिक बौद्धिक:
शारीरिक, आध्यास्मिक.-सभी प्रकारकी गक्तिरयोका विकास होता है । यह
दान रुपये-पेंसे; श्रमः सहयोगः प्रेम आदि अनेक प्रकारका दो सकता है ।
यदि आपके पास धन दान देनेके लिये नहीं है; तो श्रम-दान कर दीजिये ।
श्रम-दान अर्थात् अपने मन» डरीर) वचन; कर्म किसी भी प्रकारके श्रमद्वारा
दुसरोकी सहायता कर दीजिये । इस उदारतासे आपकी गुस आध्यात्मिक
शक्तिर्योका विकास होगा । उदारता मनुष्यके बड़प्पनका चिह्न है ।
जीवनमें सदुद्देश्यसे कार्यं करते चल्यि । यदि आपका उदेश्य
पवित्र है तो गरीवीके जीवनम भी खुखः शान्ति ओर आनन्द है । “सब
सुखी दो; सब स्वास्थ्य प्राप्त करें; सब कल्याण प्राप्त करें; सब उन्नति
करते रहें”--ये ऐसी भावनाएँ: हैं जिन्हें सामने रखकर काय॑ करनेसे मनुष्य-
को आन्तरिंक सुख-संतोप प्राप्त होता दै । आपके जीवनका उदृदेश्य
आध्यात्मिक सौन्दर्यसे युक्त जीवन तथा शक्तिकी प्राप्ति होना चाहिये । यह
उद्देदय सबसे ऊँचा और कल्याणकारी है ।
दूसरोके जीवनमे दिलचस्पी लिया कीजिये । स्वकेन्द्रित होनेसे मनुष्य
दूसरोंका हानि-लाभ नहीं देख पाता; अपना-ही-अपना भला देखता है |
आ० जी० २--
५
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