धरती की आँखें | Dharti Ki Aankhen

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Book Image : धरती की आँखें  - Dharti Ki Aankhen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चर गा थे है वेसे मैं श्रपने सत्यवादी भूमिका के लेखक प्रभाकर माचवे की बहुतश्रद्धा करता हूँ फिर भी मैं यह कहना चाहन्ना हूँ कि मेरी कला मेरा दृष्टिकोण मेरा अपना समूचा व्यक्तित्त झपना है--इसकी सारी जड़ें मेरी अनुभूतियों घारणाओं की गहरी घरती में समाई हैं-- इससें कोई भी श्रपना किताबी या सैद्धान्तिक प्रभाव नद्दीं डाल सकता । मुझे इस दिशा में अपनी सीमाएँ ही प्यारी हैं किसी की सद्दानता का दान नहीं चाहे वह नागाजं॑न तो कया इंश्वर भी क्यों न हों अन्त में अपने प्रमोद को प्यार जो रातभर प्रेंस में डियू टी बजाने के -- बावजूद हर सुबह को मुस्कराता मिलता है । कर. अपनी बात लिखकर समाप्त करते हुए सुकके ऐसा लग रहा है मानों मैं फिर अकेला हो रहा हूँ । आरती कूंज- न जलालपुर क्ष्मी-- भा | लक्ष्मी र४-रे- ४.




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