आधुनिक हिंदी हास्य व्यंग्य | Adhunik Hindi Hasya Vyangya

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Adhunik Hindi Hasya Vyangya by लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चलना पड़ेगा । जिस देदमे लॉर्ड लैसडौनकी मृत वन सकती है, उसमें सौर किस-किसको मूर्ति नहीं चन सकतो ? माई लॉ । क्या आप भी चाहते है कि उसके आस-पास लापको भी एक वैसो ही मूरति सी हो यह मृतियाँ किस प्रकारमे स्मृति-चिह्त है * इस दरिद्र देशके घनोकी एक टेरी है, जो किसी काम नहीं ला सकती । एक चार जाकर देखनेसे हो विदित होता है कि वह कुछ विशेष-पश्षियोंके कुछ देर विशाम लेनेके अदुडसे चढ़कर कुछ नहीं हैं । माई लॉर्ड ! आपकी मूतिकी वहाँ क्या शोभा होगी ? नाउए, मूर्तियां दिताव । चह देखिए, एक मर्ति है, जो किलेके मेदानमें नहो है, पर भारतवासियोके हृदयमें बनी हुई है । पहन चानिए, इस दौर पुरुपने मैदानकी मृतिसे इस देशके करोड़ो गरोवोंके हृदगमें मूति बनवाना अच्छा समझा । वह लॉ रिपनकी मूर्ति है और देखिए, एक र्मृति-मन्दिर यह आपके पचास लाखके सगमरमरवालेसे अधिक मज़वूत और सैकड़ों गुना कोमती है । यह स्वर्गीया विवटोरिया महारानीका सन्‌ १८५८ ई० का घोपणा-पत्र है। आपकी यादगार थी यही बन सकती हैं, यदि इन दो यादगारोकी आपके जोमें चुछ इयशत हो । मत्तलव समाप्त हो गया । जो लिखना था, वह लिखा गया । अब खुलासा वात यह है कि एक वार थो और उूयूटीका मुकाबला कीजिए । शोको शो हो समझिए । थो ड्यूटी नहीं है। माई लॉई ! आपके दिएली- दरवारकी याद कुछ दिन वाद उतनी हो रह जावेगी, जितनी दार्माके वालकपनके उस सुख-स्वप्नकी है! माई लॉद




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