चार अध्याय | Char Adhyay

Char Adhyay by धन्यकुमार जैन - Dhanykumar Jainश्री रविन्द्रनाथ ठाकुर - Shree Ravindranath Thakur

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धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चार भष्याय ्ु अवस्था समक ली धर मायामयीकी भ्रोरसे प्रतिकूल मंग्ाघात होते हुए भी एलाको दूर भेज दिया श्रौर फिर अपनी निष्कर्ण गृहस्थी श्रोर अध्ययन-भध्यापनमें निमग्न दो गये । माने कद्दा-- शह्रमें भेजकर लड़कीको मेमसाइब बनाना चाहते हो तो बना डालो पर तुम्हारी लाइ़ली लड़की जब ससुराल जायगी तब उसकी जानपर भा पढ़ेगी । तब फिर मुके दोष मत देना । . लड़कीके व्यवहारमें कलिकालो चित स्वाघीनताके कुलक्षण देखकर उसकी माने ऐसी झ्राशंका बार- बार प्रकट की हे । एला झ्पनी भावी सासुके दाढ़ जलायेंगी इस सम्भावनाकों निश्चित जानकर उस. काल्पनिक समधिनके प्रति उनकी झ्रनुकम्पा मुखरित हो उठती थी । इसीसे एलाके मनमें यह धारणा ढ़ दो चली थी कि ब्याइके लिए लड़क्योंको तैयार होना पढ़ता है झपने आत्म -सम्मानको पंगु बनाकर इसके लिए. उन्हें न्याय-श्न्यायके ज्ञानको भी मिटा देना पढ़ता है । एलाने जब मेट्कि पार होकर कालेजर्मे प्रवेश किया तब उसकी माकी सत्यु हो गई ।. नरेशने बीच-बीचमें विवाहके प्रस्तावपर लड़कीकों राजी करनेकी काफी कोशिश की थी पर वे उसे राजी न कर सके । एला झपूव सुन्दरी है पाज्रोंकी तरफसे प्रार्थनाधोंकी कमी न थी किन्तु विषाहके प्रति विमुखता डसके संछ्कारोर्म समा गई थी । लड़कीने परीक्षाएँ पास कर लीं किन्तु पिता उसे धविवादित छोड़कर ही मर गये । सुरेश था उनका छोटा भाई ।. नरेशने अपने इस भाईको पाल-पोसकर बढ़ा किया था भोर अन्त तक भ्पने खंचसे पढ़ाया भी । दो वर्षके लिए उसे विलायत भेजकर




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