अभिषेक | Abhishek

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Abhishek by महोपाध्याय माणकचन्द रामपुरिया - Mahopadhyay Manakchand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी हर- वाणी में कोई, कथा प्यार की लिख जाती हो। जीवन के हर- कण पर मुझको, न पमषष द शाम हो। ९) 1 £ = ॥ सच कहता हूँ- ¶ ष्टि तुम्हें हृदय से, श मैंने बेहद प्यार किया है। ` तेरी खातिर- जन्म धरा पर, रूपसि कितनी वार लिया हे मुझे याद है- बार-बार तुम, मिल-मिल कर ही हट जाती हो। मेरी होकर- और मुझी से, आखिर में तुम कट जाती हो। लेकिन अव ज संभल गया ट ऐसा कभी न होने दूँगा। भृदुल प्यार की- इस वेदी पर मन को कभी न रोने दूँगा । अभिषेक 11




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