प्रवचनसार | Pravachansar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८०, ०-<-~ < र< ००0८-० ०१०७ कक भ >~ [ 4 पीठिका | ९ { ते; ड | तथा परमारथ हव नाम याको जथारथ; ॥ ड. इदां परजाय नेय गोनता गथन हे | ई ॥ परबुद्धित्यागी जो खर्प शुद्धहीम रमः ॥ ‡ सोई कर्म नारा शिव दोत यों मथन है ॥ ५५१ ॐ 1 कवित्त । $ या प्रकार गुरुपरपरातत, यह दुतीयसिद्धान्त प्रमान 1 ६ |! शुद्ध सुनयके उपदेशक इत, शाख्र- विराजत है परान ॥ || £ समयसार पंचाखिकाय श्री,अवचनसार आदि सुमहान | 5 1 कुंदकुंद गुरु मूढ वखाने, टीका अम्रतचन्द्रकृत जान॥ ५६॥ ै कविप्राथना । $ तामे प्रवचनसारकी, वचि वचनिका मंजु | + ‡ छन्दरूपरचना रचो, उर धरि शुरुपदकंजु ॥ ५७ ॥ ई 1 कर परमागम अगम यह, करट मम मति अतिहीन | 1 ४ झाशि सपरशके देतु जिमि, शिशु फर ऊच कीन |५८॥ ! 1 तिमि मम निरख सुधीटता, हँसि कहि हैं परवीन । 1 १ काक चहत पिकःमधुर-धुनि, मूक चहत कविकन ॥५९॥ ? 1 चौपाई । 1 ¢ यदह प्रमागम अगम बताई । मो मति अस्य रचत कवेताई ! 4 ‡ सो र्खर्दसि करि मति धीरा । रिरिषसुमनकरि बेधत दीरा ६० 1 ॥ दोहा \ $ वारु मरार चै जथा, मन्दिरमेरु उडाव | + \ वालबुद्धि भविं शरँद्‌ तिमि, करन चहत कवितावे ॥ ६१} ; | | 1 २ न १० ०-००-५० गे: र




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