प्रवचनसार | Pravachansar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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| तथा परमारथ हव नाम याको जथारथ; ॥
ड. इदां परजाय नेय गोनता गथन हे | ई
॥ परबुद्धित्यागी जो खर्प शुद्धहीम रमः ॥
‡ सोई कर्म नारा शिव दोत यों मथन है ॥ ५५१ ॐ
1 कवित्त ।
$ या प्रकार गुरुपरपरातत, यह दुतीयसिद्धान्त प्रमान 1 ६
|! शुद्ध सुनयके उपदेशक इत, शाख्र- विराजत है परान ॥ ||
£ समयसार पंचाखिकाय श्री,अवचनसार आदि सुमहान | 5
1 कुंदकुंद गुरु मूढ वखाने, टीका अम्रतचन्द्रकृत जान॥ ५६॥
ै कविप्राथना । $
तामे प्रवचनसारकी, वचि वचनिका मंजु | +
‡ छन्दरूपरचना रचो, उर धरि शुरुपदकंजु ॥ ५७ ॥ ई
1 कर परमागम अगम यह, करट मम मति अतिहीन | 1
४ झाशि सपरशके देतु जिमि, शिशु फर ऊच कीन |५८॥ !
1 तिमि मम निरख सुधीटता, हँसि कहि हैं परवीन । 1
१ काक चहत पिकःमधुर-धुनि, मूक चहत कविकन ॥५९॥ ?
1 चौपाई । 1
¢ यदह प्रमागम अगम बताई । मो मति अस्य रचत कवेताई ! 4
‡ सो र्खर्दसि करि मति धीरा । रिरिषसुमनकरि बेधत दीरा ६० 1
॥ दोहा \
$ वारु मरार चै जथा, मन्दिरमेरु उडाव | +
\ वालबुद्धि भविं शरँद् तिमि, करन चहत कवितावे ॥ ६१} ;
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