सप्तति का प्रकरण | Saptati Ka Prakaran

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Saptati Ka Prakaran by फूलचंद्र सिध्दान्तशास्त्री - Fulchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ठ ) पं० पूल्चंदजी शालनी अपने विषय के गंभीर श्रम्यासी हैं । उन्होंने दिगम्बरीय कर्मशाल्नो का तो आकलन किया दी ई; परन्तु इसके साथ दी साय श्वेताम्बरीय कम शाल के भी पूरे श्रभ्यासी र । श्रपने इस श्नुबाद्‌ में उन्होंने अपने चिरकालीन श्रभ्यास का पूणे उपयोग किया है श्रौर प्रत्येक दृष्टि से न्थ केः सर्वाङ्ग सम्पू बनाने का पं प्रयत किया दै । काशी विश्वविद्यालय में प्राव्य विद्याविभाग में जैन दर्शनाध्यापक पं० दल्सुखभाई' मालवणिया का भी इस शुभ कार्य में पूर्ण हाथ रहा है । पं० दल्सुखभाई + ' ने पश्चम और पष्ट कर्मग्रंथ के प्रकाशन के समय प्रेस श्र 4 के में, प्रकाशन के कार्य में और सलाह मशविरा आदि श्रत्मीय भाव से प्रोत्साइन सहायता दी है । मैं इसका झभारी हूँ । इमे इतनी मदद हमको मिली है जिसके लिये इम श्रभारी हैं । ५००) दिवान बहादुर सेठ केघरिंह जी वाफना कोटा ( राजपएूताना ) ३००) .बा० गोपीचन्द्जी घाङीदाल, उनके पित्ता स्वगाय सेठ शिवचन्दजी धाङ़ाचाल के स्मरणां । १२९४) सेठ एलचन्दजी फावक फलोदी । ---दयालचंद्र




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