बँगला के आधुनिक कवि | Bangala Ke Aadhunik Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चैंगला के राघुनिक कवि १३
यह श्यावेग श्रन्थ था, वे विलकुल श्ात्मसचेतन नहीं थे, आत्माशि-
मानी थे ! उनके मन से चिचार तथा कल्पनाच्यो का श्रवाध श्रधिकार
था, फिर भी वह ऊपर दी उपर वह जाते थे, श्यंतरंग मे पठकर वह
काव्यस्रप्टि की गहरी प्रेरणा नहीं हो पाती । एक एक 4८ जेसे उन पर
दखल जमा लेता था, च्चञ्धरेजी चिदया का गवं इसके सूल म भथा |
ग्रद्वरजी रिक्ता बल्कि उसके गवं के साथ श्चत्यन्त देशी ्रतिभावुकता
मिलकर जिन काव्यो फी सृष्टि हृ दै उन्दे देखकर हृदय से एक
जीव शुदगुदी पैदा होती हैं ।” +-अवश्य ये ही यातें सुरेन्द्रनाथ
सजुमदार मे जाफर एक कलामय समन्वय मे पर्हुचती हं । श्ररारहवी
सदी के ्र॑ेजी साददित्य मे जो चिचारशीलता तथा युक्ति की प्र॑घानता
थी उसके साथ वंगाली भावुकता के समन्वय की चेष्टा उन्होंने की ।
उनकी .यद् चेषा पृण रूप से सफलता मडित न हो सकी, इस साध्य
साधन के लिये एक महान प्रतिभा की जरूरत थी, फिर भी वे एक
मध्य सांग वलम्बन करने मे सफल हए । उनकी रचनाग्मो मं
कवित्य 'मोर युद्धि का एक सुन्दर तारतम्य द्म पाति ह् । न हेमचन्द्र
की तरह मदाकाल्य-लेखन के प्रयास मेदी उन्होंने व्पनी सारी शक्ति
व्यय न कर डाली न नवीनचन्द्र की तरह सहाकाव्य रचना के नाम
पर धमे तथा राजनितिक चक्तओं को उन्होंने अतुकान्त कविता सें
लिपिचद्ध किया ।
अआपधावनक चड्ला जसा का उद्भव काल
नवीन वेंगला साहित्य के यथाथ उद्भव काल हम ?८५८-१८प५ ले
सफत है । राजनीति मे यदी काल प्रवल छालोइ़न चिलोड़न का समय
ह । {८५७ का गडर गड पृर्वापरनन्वन्यहीन घटना नदीं दह, उनन्
मूल ८५७ से परिले फ क्ल मे प्रनारित ह । गदर के इधर तथा
उधर जो प्राविचामालिक परिवर्वन ह्, जे विचारों. स्वार्पो.
ग्पादर्शो' त्तवा पद्धतियों का संघर्ष हया उसके फलस्वरूप साहिन्य
-री सोटिंदलान मलमदार-« «
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