बँगला के आधुनिक कवि | Bangala Ke Aadhunik Kavi

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Book Image : बँगला के आधुनिक कवि  - Bangala Ke Aadhunik Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चैंगला के राघुनिक कवि १३ यह श्यावेग श्रन्थ था, वे विलकुल श्ात्मसचेतन नहीं थे, आत्माशि- मानी थे ! उनके मन से चिचार तथा कल्पनाच्यो का श्रवाध श्रधिकार था, फिर भी वह ऊपर दी उपर वह जाते थे, श्यंतरंग मे पठकर वह काव्यस्रप्टि की गहरी प्रेरणा नहीं हो पाती । एक एक 4८ जेसे उन पर दखल जमा लेता था, च्चञ्धरेजी चिदया का गवं इसके सूल म भथा | ग्रद्वरजी रिक्ता बल्कि उसके गवं के साथ श्चत्यन्त देशी ्रतिभावुकता मिलकर जिन काव्यो फी सृष्टि हृ दै उन्दे देखकर हृदय से एक जीव शुदगुदी पैदा होती हैं ।” +-अवश्य ये ही यातें सुरेन्द्रनाथ सजुमदार मे जाफर एक कलामय समन्वय मे पर्हुचती हं । श्ररारहवी सदी के ्र॑ेजी साददित्य मे जो चिचारशीलता तथा युक्ति की प्र॑घानता थी उसके साथ वंगाली भावुकता के समन्वय की चेष्टा उन्होंने की । उनकी .यद्‌ चेषा पृण रूप से सफलता मडित न हो सकी, इस साध्य साधन के लिये एक महान प्रतिभा की जरूरत थी, फिर भी वे एक मध्य सांग वलम्बन करने मे सफल हए । उनकी रचनाग्मो मं कवित्य 'मोर युद्धि का एक सुन्दर तारतम्य द्म पाति ह्‌ । न हेमचन्द्र की तरह मदाकाल्य-लेखन के प्रयास मेदी उन्होंने व्पनी सारी शक्ति व्यय न कर डाली न नवीनचन्द्र की तरह सहाकाव्य रचना के नाम पर धमे तथा राजनितिक चक्तओं को उन्होंने अतुकान्त कविता सें लिपिचद्ध किया । अआपधावनक चड्ला जसा का उद्भव काल नवीन वेंगला साहित्य के यथाथ उद्भव काल हम ?८५८-१८प५ ले सफत है । राजनीति मे यदी काल प्रवल छालोइ़न चिलोड़न का समय ह । {८५७ का गडर गड पृर्वापरनन्वन्यहीन घटना नदीं दह, उनन् मूल ८५७ से परिले फ क्ल मे प्रनारित ह । गदर के इधर तथा उधर जो प्राविचामालिक परिवर्वन ह्‌, जे विचारों. स्वार्पो. ग्पादर्शो' त्तवा पद्धतियों का संघर्ष हया उसके फलस्वरूप साहिन्य -री सोटिंदलान मलमदार-« «




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