जैन बौद्ध और गीता का साधना मार्ग | Jain Bauddh Aur Geeta Ka Sadhana Marg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ ११- समवय की धारा य्चपि उपरोवत बार प्र हम प्रवतक धम वर्था वदिक परम्परा और नवतक घम अर्थात धमण परम्पग क मूलमूत विशेषतामः मौर उनर्व सास्कृतिव एव दानिक प्रदेय को समझ सकते है कितु यह मानता एक प्राग्व प्रणी होगा किमान वैदिवे चारा शीर रमण धारा मे भपने इस भूरु स्वरूप वो यनपे स्वाह एक ही दष शौर परिव मे रहकर दोनों ही घाराओ पे किण यह्‌ असम्मब था कि वे एवं दूसरे वे प्रभाव है अछूती रहें । मत जहाँ वैतिव घारा मैं श्रमण धारा (निवर्तक धम परम्परा) मे' तत्वों का प्रवश हुआ हु, वहाँ श्रमण घारा में वदिक धारा (प्रवतक घम परम्परा) वे' तत्वों का प्रवेश हुआ है । अत आज वे' युग में कोई धम परम्परा न हो एव व निवृत्ति माग षौ पोपक दह सौर न एकान्त प्रवृत्ति मार्ग की पापक हू । वस्तुत निवृत्ति मौर प्रवृत्ति पै सम्ब मे एकतवं दृष्टिकोण न तो -यवहारिक है और ने भनोवनानिक १ मनुत्य जब तक मनुष्य हू मानधघीय आत्मा जब तक शरीरै साग्र योजित होकर सामाजिक जीवन जोती हे, ठव तक णका त प्रवृत्ति भौर एवान्त तिवृत्ति फी वात करना एक मृग मरोचिका मेँ जीना है । वस्तुत भावक्षयक्ता इस बात की हू दि हम वास्तविकता कौ समक्षे भौरभरवृत्ति तथां निवत्ति मै तत्त्वो मेँ समुचित समन्वय स एक ऐसी जीवन दाली खाजें, जो व्यक्ति और समाज दोनों षै छिए बल्याणकारी हो मौर मानव को तष्णाजनित मानसिक एव सामाजिक समास से मुक्ति दिला सर्वे । भारत में प्राचीन काल से ही ऐसे प्रयत्न हाप रह हू । भ्रवतक$धाराके प्रतिनिधि हिद धम मे रसे समदम दे सबसे अच्छे उदाहरण $शावास्याषनिपद्‌ शौर्‌ भगवद्गीता है। भगवद्गीता मे प्रवृत्ति मागर मौर निवृत्ति मागमे समवय का स्तुत्य प्रयास हुआ हु। यद्यपि निवतव धारा षो प्रतिनिधि जनपम श्रमण परम्परा व मूल स्वरूप का रक्षण धरता रहा ह्‌, फिर भी परवर्ती काल में उसकी साधना पद्धति में प्रवत्तक धम के तत्त्वों था प्रवश हुआ ही हू । श्रमण परम्परा को एव अय धारा वे रूप में घिवसित यौद्धघम में हो प्रचतक धारा के तसवों का इतना अधिक प्रवेश हुआ कि महायान से तत्रयान कौ यात्रा तक वहं अपने भूल स्वरूप से काफी दूर हो गया। फिलु यदि हम बाल्क्रम में हुए इन परिवतनों को दृष्टि से ओोझल कर दें, तो इतना निश्चित हु कि अपने मूल धारा के थोड़े बहुत अ तरों का छोडरर, जन बोद्ध मौर गीता वी साधना पद्तियाँ एक दूतर म॑ काफी निरट हूं 1 म्रस्तुत प्रयाम में हमन इग तीना वी सपना पद्धतिमा वी निकर्ता को स्पष्ट रमै का प्रयास करा ह्‌, जहाँ जो बन्तर दिखाई लिये उनवा भी यथास्यल सकते कर दिया हैं इस तुलनात्मक अध्ययन में हमन यथा सम्भद तटस्थ दृष्टि से विचार प्रिया है 1




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