कवि वचन सुधा | Kavi Vachan Sudha

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Kavi Vachan Sudha by रामकृष्ण वर्म्मा - Ramkrishn Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविवचनसुध। | १५ मुखरित मज मेन मलकीयति मुलुक मानो माफमेो। पफ गहिको अकाप्न पुनि लिन श्रथाह थाह अति जिकराल ब्याल काल को खेलाइबों । सेर समसेर धार सहनो प्रवाह भान गज सगराज द् हथेरिन लराइवो ॥ गिरि सो गिरने ज्वाल माल में जरन हाइ काशी में करोट देह हिमि में गलाइबों । पं बिष विषम कबूल कवि नागर पे कठिन कराल एक नेह को निबाहिवों ॥ ५८ ॥ सेवती नेवार सेत हॉरिन के हार जूही जूथ औ अनार मोती निद्र लपन्त भो । पन्ना पाखगज पत्र चम्ःक समान फाव माणिक गुलाब नील इन्दिवर गन्त भो ॥ माधवी नयूनो गऊ- मदकल सूनो दनो श्रौषं वाटिका बनार पूने। बिलसन्त भो । जतन नलम नोरि रतन रप्राल रङ्ग अतन अनन्द हेतु जोहरी नप्न्त भो ॥ ५६॥ सोरम सुषा सोधि सोहत पिललीमु है साहसी सर्मार साफ सोखी सो सरवै जगे । कोकिला कल्लाप कम्प क्रौतुक कहे को कुज कमनीय केलि कला कलित ठगे लभ ॥ फूलन की फाव चार्‌ चांदनी हिंताब औध आनंद की आव नौल नेह उफौ लै । पायक पर्पीहा पे. जगावत प्रवीन पंचमायक प्रताप ऋतु नायक रो लगे | ई० ॥ आयो ऋतुराज परो सुगन समाज भाज वावरे बिथोगी पात पूरब को जाफ मो । पुहुप पराग पौन प्र्ञव पपीहा पिक पीतम पिड़ानि प्रीति झवध इजाफ मो ॥ मुकुालित मा तती मलिन्दू | ==




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