ध्रुवसर्वस्व | Dhruv Sarvasv

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Dhruv Sarvasv by रामकृष्ण वर्म्मा - Ramkrishn Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. < ) साौक लानत न भोर सँभ्त हित प्रूव प्रेमहो के रग सरसाने हैं। प्यारी जू के मिलिवे की त्रि- पित न होत कैद्द कोठि कोटि जुग एक पल से ७ विहाने हैं ॥ २४ ॥ बडे बडे उब्जल सुरंग अनियारे नैन अंजन को रेख हैंरें हियरी सिरात है। चपलाई खजन की अरुनाई कजन को उजराई मोतिन की पानिप लजात है ॥ सरस सलज्ण नये रहत हैं प्रेमभरे चन्नल न अद्यल से कैसे समात है। हित ध्रुव चितवानि छटा जिहि कोद परे तिह्ि ओर वरषा सो रुप की है जात है ॥ २५ ॥ फॉलपच सारो वनी सोंघेशी के मोदसनी चिते रहे स्थाम धनी मानो चित्र ऐन हैं । अऔँगी नौल रहो फवि कहि न सकत छवि मोतिन की भलकनि अति सुखदैन हैं ॥ चितवनि मैन सड्े मुसकानि रसभई को किलाहू वारि डारो ऐसे रूटुवैन हैं । हित ध्रुव अग अंग सवै सुख सार- सई सन के हरनहार वाके दोऊ नेन हैं 1२६॥




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