कर्पूरमंजरी | Karpur Manjari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9४ श्रस्तावना का अवतार नहीं दो सकता । दूसरे राजशेखर उपाध्याय या गुरु भी थे इसलिए उनका नाह्मण होना अधिक संगत प्रतीत होता है । लेकिन ये दोनों युक्तियाँ सबल नहीं है, भवभूति का अवतार होनेसे ष्टी राजदोखर को ब्राह्मण महीं मान सकते? क्योकि राम ओर कृष्ण भगवान्‌ का अवतार होने पर भी ब्राह्मण नहीं ये । दूसरी धुक्ति मी टीक नदीं है। धममंस्त्रों में क्षत्रिय के गुरु दोने के विरुद्ध कोई कथन नदीं है । राजशेखर क्षत्रिय होने पर भी गुरु दो सकते थे । राजदेखर के पिता दुदुक एक राजा के ( बालरामायण श, १३) मद्दामात्य थे । इससे दम ऐसा समझ सकते हैं कि राजशेखर ब्राह्मण रहै होंगे, क्योंकि कई जाह्मण चाणक्य, सायण आदि प्रत्तिद मन्त्री हुए हैं। लेकिन कोई बात निश्चित नहीं होती, क्योंकि ब्राह्मणों ने कभी-कभी प्रधानसेनापति का पद-जिसपर कि प्राय: क्षत्रिय दी कार्य करते दैं--भी सभाला है और क्षत्रियों ने भी समय समय पर मन्त्रिपद का कार्य किया है । कामन्दकीय नीतिसार जेसे ग्रन्थों में ऐसा कोई नियम नदीं ह जिसके अनुसार बराह्मण हो मन्त्री बनं। यायावर वंश्च मं, चाहे ये ब्राह्मणर्हो याक्षत्रिय, वड़े-वडे विदान्‌ उत्पन्न हुए । जैसा कि-- समूतो यत्रासीद्‌ गुणगण इवाकारु जख्द्‌ः, सुरानन्द्‌ः सोऽपि श्रवणपुटपेयेन वचषा । न चान्ये गण्यन्ते तरलकविराजप्रश्डुतयो, महाभमागास्तस्मिज्नयमजनि यायावरकुले ॥ इस छोक से स्पष्ट है । ठेपरिल इन सवने अलजनट द उनके पूजय । नदीनामेकरूसुता नृपाणां रणविग्रहः । कवीनां च सुरानन्दशचेदिमण्डलमण्डनम्‌ ॥ इस शोक में उछिखित सुरानन्द, तरक तथा कतरिराज आदि इस बंश की अन्य शाखाओं में रदे होंगे । स्रक्तिमुक्तावली में उद्धूत राजशेखर के एक शोक में *यायावरकुलश्रेणि” के कथन में भी इसकी पुष्टि दोती है । इससे यह निष्कष॑ निकलता है कि अनेक विद्वज्जन मण्डित यायावर कुल में इनका जन्म हुआ था और दुदुक इनके पिता तथा शीलवत्ती इनकी माता थी । राजशेखर का व्यक्तित्व अनेक विद्वानों से विभूषित यायावर वंश में उत्पन्न होने के कारण राजशेखर की शिक्षा बढ़ी पूर्ण थी और वे उस समय की समस्त विद्याओं से परिचित थे । काव्यमीमांसा




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