भारतीय साहित्य भाग - 3 | Bharatiy Sahity Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ भारतीय साहित्य [वर्ष ४
0 न [1] प्रग्र प्रगोलीक़त अरे संवृत से कुछ ऊँचा, उदाहरणायं
1577711 [5110 | पूर्मी
[1] श्रग्र भ्रगोलीकृत संवृत से कुछ नीचा, उदाहरणाथं
11:111। [1:71] ^तिल्ली' । यह संस्वन केवल तब
श्राता है, जब दीघंता का स्वनिम इसके साथ हो ।
1111 = [7] पडव गोलीकृत श्रधं संवृत से कुं ऊचा, उदाहरणाथं
0५२ [11२] (दरार
[ए] परच गोलीकृत संवृत से कृ नीचा, उदाहरणायं
1]7प्:२। 1 [पः २] पत्तों से बना हृश्रा दोना'। यह
संस्वन भी केवल तव श्राता है जब दीघंता इसके
साथ हो ।
।९।- [५] श्रप्र ग्रगोलीकृत श्रं संवृत, केवल [9] [*+] के पहल उदाहरणाथं
{८८४६1 [८४८्९ः| 'पुकारना'
[[)] अ्रग्र अ्रगोलीकत श्रध संवृत प्रौर श्रधं विवृत के बीच के ऊंचाई का,
देप स्थितियों मे, उदाहरणाथं 1111011 [1111प्.] आाँख'
[8] श्रग्र श्रगोलीकृत भ्रधं विवृत, जब दीघंता का स्वनिम इसके साथ हो,
उदाहरणाथं । 71 € : १। 7118 : | लोहा
10 = [0] पर्व गोलीकरृत भ्रधं संवृत, केवल [$] [\५) के पहले, उदाहरणाथ
। १०९०. [00०४९:] पीठः
[[1] परच गोलीकृत भ्रधं संवृत भ्रौर श्रधं विवृत के बीच कौ ऊंचाई का, शेष
स्थितियों मे, उदाहरणाथं । ८०1५८
[८(]1 ह :] मेदक
!)] पञ्च गोलीकृत भ्रधं, विवृत, जब दीघंता इसके साथ हौ, उदाह्रणाथं
।00:2| [४२:२| “सिर'
[श] श्रग्र प्रगोलोकृत विवृतसे कृचं ऊंचा, केवल [$] के बाद, उदाहरणार्थं
।11:%2॥ (या 11:11, या ।1{1:€81) [11 : ४]
“भ्रोठ'
121 = [4] शेष स्थितियों मं प्राने वाला मध्य प्रगोलीकृत विवृत से कुछ ऊँचा,
उराह्रणाथं ।} 211 [211] .सम्पक' । ।21 का एक
भ्रत्य संस्वन जब दीघंता के साथ श्राता है, तब बहुत सुक्ष्म रूप से श्रलक्षित सा
विवृत को श्रोर भरुक जाता है। यहाँ उसे पृथक चिज्न देना श्रावश्यक नहीं है । उसका
उदाहरण है--112:111 [2:11] कोई
२.३.१. उपर २.१. मं लिखा जा चुका है कि दाब्दान्त कौ स्थिति में दीघं स्वर
प्रौर हृस्व स्वरके मध्य का विरोध लुप्त हो जाता है । उस स्थिति में ध्वन्यात्मकं रूप
से तो स्वर दीघ॑ ही होत। है, किन्तु वहाँ की दीघंता को मेने स्वानिमिक न मानकर,
स्थित्यनुकूलित माना है ।
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