कर्पूरमन्जरी | Kapoor Manjari

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Kapoor Manjari by रामकुमार -Ramkumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4१४ प्रस्ताचना का अवतार नहीं हो सकता 1 दूसरे राजरोखर उपाध्याय या शुरु भी थे इसलिए उनका ब्रह्मण होना अधिक संगत प्रतीत होता है । लेकिन ये दोनों युक्तियाँ सबल नही हैं, भवभूति का अवतार होने से ही राजशेखर को ब्राह्मण नहीं मान सकते ? क्योंकि राम और कृष्ण भगवान्‌ का अवतार होने पर भी ब्राह्मण नही थे । दूसरी थुक्ति भी ठीक नहीं है। ध्मंखज्ों में क्षत्रिय के शुरु दोने के विरुद्ध कोई कथन नही है। राजशेखर क्षत्रिय होने पर भी शुरु दो सकते थे । राजशेखर के पिता दुदुक एक राजा के ( बालराम्श्यण २, १३) महामाल्यये। इससे दम ऐसा समझ सकते हैं कि राजदेखर ब्राह्मण रहे दंगे, क्योंकि कई ब्राह्मण चाणक्य, सायण आदि सिद्ध मन्त्री हुए हैं। लेकिन कोई रात निशित नदी होती, क्योकि ब्राह्यणो नै कभी-कमी प्रधानसेनापति का पद-जिसपर कि प्रायः क्षत्रिय हो कार्य करते हैं--भी सभाला है और क्षत्रियों ने भी समय समय पर मन्त्रियद का कार्य किया है । कामन्दकीय नीतिसार जेसे ग्रन्थों में ऐसा कोई नियम नहीं है जिसके अनुसार न्राह्मण हो मन्त्री बनें। यायावर वश में; चाहे ये ब्राह्मण हों या क्षत्रिय, बड़े-बड़े विद्धान्‌ उत्पन्न हुए । जेसा कि-- समूतों यत्रासीदू गुणगण इचाकाल जलदः, सुरानन्दः सो$पि श्रवणपुटपेयेन वचसा । न चान्ये गण्यन्ते तररुकविराजप्रश्टुतयो, महाभागास्तस्मिन्नयमजनि यायावरकुले ॥ इस शोक से स्पष्ट है । लेकिन इन सबमें अकालजलद ही उनके पूर्वज ये । नदीनामेकछूसुता चुपाणां रणविद्यहः । कवीनां च सुरानन्दशेदिमण्डरमण्डनम्‌ ॥ इस शोक में उछिखित सुरानन्द, तरक तथा कपिराज आदि इस वेदा की अन्य शाखाओं में रहे होंगे । सक्तिमुक्तावली में उद्धृत राजशेखर के एक शोक में “यायावरकुलश्रेणि” के कथन में भी इसकी पुष्टि होती है। इससे यद्द निष्कर्ष निकलता है कि अनेक विद्वञ्जन मण्डित यायावर कुल मेँ इनका जन्म हुआ था ओर दुदुंक इनके पिता तथा शीर्वती इनकी मत्ता थी । , राजशेखर का व्यक्तित्व अनेक विद्वानों से विभूषित यायावर व्च मे उत्पन्न होने कै कारण राजशेखर की झिक्ष। बड़ी पूर्ण थी और वे उस समय की समस्त विधां से परिचित ये कान्यमीमता




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