मेवाड़ पतन | Mewar - Patan

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Mewar - Patan by द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च्य पदला अंक श्ण्‌ ही हि राणा--सामन्तगण हमारी समझमें तो युद्ध व्यर्थ है। दम मुगल- सेनापतिके साथ सन्धि करेंगे । चोबरदार सुगल-दूतकों बुलाओ । चोवदार जाता है । गोविन्द ०--महाराणा प्रताप मद्दाराणा प्रताप अच्छा हो यदि ठुम स्वर्गसं बैठे हुए ये बातें न सुन सको वर तुम अपने मैरव स्वरसे इस द्दीन उध्दारणकों दवा दो | आर मेवाड़ सुगलोंकी प्रभुता स्वीकार करनेके पदले दी ठुम किसी भारी भूकम्पसे ध्वस हो जाओ | १ चोवदारके साथ सुगल-दूत आता है। राणा--ठुम अपने सेनापतिसे जाकर कहो कि दम सन्धि करनेके लिए हैणर हैं । तेजीके साथ झपटती हुई सत्यवती आती है । सत्यवत्ती--कंभी नद्दीं कभी नहीं । सामन्तगण आप लोग युद्धके लिए तैयार दो जायें । राणाजी यदि आप लोगोंको रणक्षेत्रमें न ले जायें तो आप लोगोंकी सेनाका संचालन में करूंगी । गोविन्द०--देवी ठुम कौन हो ? इस घोर अन्धकारमें विजठीकी तरह आ खड़ी होनेवाठी ठुम कौन हो ? यह कोमल और गम्मीर वज्ज-ध्वनि किसकी सुनाई पढ़ती है राणा--रुच बतलाओ ठुम कौन हो सत्यवती--मद्दाराज मैं एक त्वारणी हूँ । मैं मेवाढ़के गाँवों और तराइयोंमें उसकी महिमा गाती फिरती हूँ इससे अधिक मेरे किंसी और परिचयकी आवश्यकता नहीं । सामन्तगण--झाश्चर्य सत्यवती--सामन्तगण राणाजी उदयसायरके प्रासाद-कुजमें पढ़े पढ़े विलासके स्वप्न देखा करें । में आप लोयोंको युद्ध-क्षेत्रमें ले चर्दूँसी 1 क्या । मेरे शरीरसें यह योवनका तेज कदेखि झा गया मुझ्म यदद आनन्द यह उत्साह कहदँसे आकर भर गया 1 सामन्तगण आप लोग मद्दाराणा प्रतापके पुत्रकी इस अपयदसे रक्षा कीजिए । इस विलासकों लात मारिए इन सब खिलौनोंको नेष्ट कर दीजिए । पीतढका एक मीर- फर्श उठाकर गोविन्द्सिद् पास ही ढगे हुए पक बढ़े शीशेपर फीककर मारते हैं । शीक्षा चूर चूर हो जाता है ।




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