आर्यों का मूलस्थान | Aaryon Ka Moolsthan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १. | (९) पायेही नहीं जाते इस तरहके ऊपर फसिल धारण करने वाली वहोंके बडे बडे सिर सिके जमें हुए हैं । इन सिछसिलोमें उस बिकासके भमाण सुरक्षित दै जो पञ्युओं ओर पौधोंके बीच पेढाइजोइक (581602५, मसो जोइक ( 2168020८ ) तथां केतो जोदक ( 0४0201८ ) यु्गोसे डगाकर वर्तमान समयतक होता र्य है । “ सौभाग्यसे भारतमें पजावके नमकके पहाडमे हम उपयुक्त पंक्तिकों सुरक्षित पाते हैं। यद्यपि जो ट्रिलोबाइटस सुरक्षित हैं वे प्रसिद्ध नालकके ठीक ठीक सदा नहीं तोभी ऐसे रूप विद्यमान हैं जो. बहुत कुछ उनसे मिछते जुल्ते होनेके कारण उनके सजातीय कहेजासकते हैं और दम सरख्तापूर्वक यह बात निधारित कर सक्ते है कि जो तह निओबोखस (1९०४०1०8 ) तहोंके रूपमे निस्तारके साथ आगे उल्लेख की गई है, वे योरुपीय ठद्गके निन्नतर कैम्नियनवारी. तदोकि समान हैं ”” जो निओबोलस तह्दोंके वननेके पूर्व थे उनकी और हम जगे दीह वार्तोका सङ्केत करते दैः -क्र-एक -प्रकारकी तल्िर्योकी ( 8007808 ) बिहधोरी पत्थरकी चट्वानोंका वडा समूह जे प्रायद्वीपके आये भागे ्रकट होता दै, ख-फोसिल विद्दीन, तहोंकी बडी मोटाइयां जो ग्वालियर, कछा पह, विन्ध्य जते देशौ नामेंसि असिद्ध हैं जो युग पिछले कैंत्रियद समयके बाद इुए हैं उनके प्रमाण भारतमें दो समूहोंसे आंप्र होते हैं ”” ग-फोसिलवाली तद्दोंके चिंह ““कैम्नियनसे लेकर कार्ोनाफे रिअस ( 08पव०पांछिपंणा5 ) तक?” प्रायद्वीपके सिवा दुसरे क्षत्रोमें 'पाये जाते हैं। “ इस युगके कोई प्रमाण आरायद्वीपमें नहीं सुरक्षित हैं। घ-परमा-कारबोनी फेरिअस . ( हि6/ण0 (बफि0पंरिणं0प्रड ) , के समयसे लेकर आजतक ”. जीवन तथा घटनाकि भमाण




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