हिंदी बहीखाता | Hindi Bahikhata
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
461
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
वेगवती धाराओं के सामने पराचीन शैली से बधि हुए व्यापार-गद्
का रिकाव होना असम्भव रहै! कहने का तात्पय्य यह है कि,
हम अपनी व्यापार-पद्धति मे जमाने के आविष्कारों का पुण लाभ
उठावें । समय-विभाग, परिश्रम-चिभाग, औद्योगिक क्षमता आदि
अथ -शास्त्रीय सिद्धान्तों का उनमें लाभदायी अनुकरण एवं अनुशी -
लन कर, तथा यह बात सदा स्मरण रक््ख कि, हमारे पाश्चात्य
भाइयों ने इन्हीं आधविष्कारों तथा सिद्धान्तों का समादर करते
हुए, न कि हमारी तरह से अनादर करते हुए, समस्त संसार का
व्यापार आज अपनी मुट्ठी में ले रदखा है । जिन देश-हितैघियों
ने सम्पनि-शास्त्र का कुछ भी अध्ययन किया है, वे इस बात को
जानते है कि, आपन जेसी तुच्छ वस्तु बनाने के लिये इड्रलेण्ड
देश में सोलहवीं शताब्दी में ही परिश्रम को लगभग अठारह हिस्सों
मे वाटा कर्ते थे । आधुनिक समय में इससे भी सूक्ष्मतर परि-
श्रम एवं समय -विभाग उन देशों में ओद्योगिक सफलता प्राप्त करने
के लिये किया जाता होगा, यह बात इससे सहज ही हमारी
समभ में आ सकती है ।
जिस प्रकार श्रम-विभाग से व्यवसायों मे हमारे पाश्चात्य
भाइयों ने लाभ उठाया है, उस ही प्रकार व्यापार में भी वे लाभ
उठा चुके हैं, उठाते हैं और उठाते रहेंगे । क्योंकि वे इस बात
को भलोभांति खसमभक चुके दै कि, एक मनुष्य के जिस्म एक काम
कर देने से बह उसमें बड़ा -दक्चहो जाताहै। उसकी नस-नस
से वाकिफ हो जाने के कारण ऐसी कोई कठिनाई फिर शोष नहीं
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