काव्यशास्त्र | Kavyashastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य का स्वरूप र रूप मौर व्यक्तित्व के प्रभाव की विद्युत ज्योति को सँजोकर सुरक्षित रखना भौर उससे अनुभूतियों सौर चेतनातओं के प्रदीप आलोकित कर देना, काव्य की ही सामर्थ्य है । वास्तविक वात वो यह है कि शास्त्र भौर विज्ञान तो जीवन का सार या निचोड़ देते हैं, पर जीवन के यथार्थ रूप कीं धारा को बक्षुण्ण यौरपूर्ण्पसे प्रभावितं करते पटना काब्य का ही कार्यह। काव्य की व्यापकता का अनुभव हम गीर प्रकार से भी करते हैं । काव्य की व्यापक गपील है । किसी भी देल, जाति अथवा युग का काव्य समस्त मानवता को प्रभावित करने की दाक्ति रखता है; अतः देश, राष्ट्र, जाति, वर्ग की संकोर्ण भावना की परियि से वाहूर विदवन्यापी मानवता की भावना के विकास के लिए काव्य का कार्य महत्वपूर्ण है । शासक का सम्मान अपने दे में ही अधिक है, पर कवि के सम्मान की कोई सीमा नहीं 1 काव्य समस्त मानवता को सम्पत्ति है । काव्य वाह्म-जगतु के साथ-साथ हमारे भीतर के मानस-जगत्‌ का भी चित्रण प्रस्तुत करता द भीर इसके दारा अन्तस्‌ का रदस्य उद्घाटित करता है । मतः काव्य का वड़ा प्रभाव ह । वहु हमारे जीवन को सदैव नयी-नयी प्ररणाएं देता रहता ह । मत काव्य का हमारे जीवन में गादवत महत्त्व है । जीवन में उपयोगी होने के अतिरिक्त काव्य का उससे घनिप्ठ सम्बन्व एक अन्य प्रकार से भी प्रकट है । काव्य का विपय और वस्तु भी जीवन ही है । वास्तविक जीवन श्रीर जगतु की भूमि पर ही काव्य के काल्पनिक जीवन का प्रसार और विकास होता है। जीवन की घरती छोड़ने पर काव्य का प्रभाव समाप्त हो जाता है । अतः काव्य का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्व दै । २. काव्य के लक्षण काव्य के अनेक लक्षण विद्वानों, कवियों भर सहुदयों ते दिये हैं । ये लक्षण अगणित हैं । काव्य का स्वरूप यद्यपि इन लक्षणों में वव नहीं पाता, फिर भौ इन लक्षणों के अध्ययन से हम उसके स्वरूप के विविध रूपों और तत्वों को हृदयंगम कर सकते हैं । गतएव नीचे हम कुछ महत्त्वपूर्ण लक्षणों के विज्षेपण और विवेचन ढारा काव्य के रूप को स्पष्ट करेंगे । सबसे पहले हम संस्कृत के माचार्यों द्वारा किये गये काव्य-लक्षणों पर विचार करते हैं । संस्कृत काव्य-लक्षण नाटक को काव्य का एक रूप मानने से, भरत मुनि का नाट्यक्षास्त्र सबसे प्रथम, काव्यशास्त्र का अन्य ठहरता हैं। नाट्यथास्त्र में काव्य का कोई लक्षण नहीं दिया गया । काव्य के मनेक मंगों का विवेचन उसमें है जैसे रस, गुण, अलंकार, भाव भादि, १. किसी कवि ने कहा भी हई :- कागज कै से नोट हँ, विन गुन नृपति प्रचोन विकत पराये देस ममे, नहि कौड़ी कै तीन ॥




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