बिहारी का नया मूल्यांकन | Bihari Ka Naya Mulyankan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ बच्चन सिंह - Dr. Bachchan Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क हीठिकाम्प कर देतु
ब्यव्ार करते समय रोमास था घनुभव सही कर पाता ।” एमे बरे परमो
में थॉ कहा था समता है उसका थीवन दर्सेस घगसौर झौर कीड़ापरक होता इ
दम जीबन दन की पमिस्पक्ति रीतिकाल थी कबितापा में बिखरी पदी है ।
'प्रलिजञात बर्प दे: इन्हीं लोगो को रीतिकार्प्पों में “रसिक' कहा पया हैं ।
थे रमिक या सहुइप मरत भौर प्रमिनत के रमिके धर सहरुप की पर्षबत्ता
को चुके थे । सहुइप थी प्पाक्या करते हुए प्रसिनवगुप्त ने “लोचत' से सिखा
है-'पिपां बम्यातुणीसाताम्पाप्रदसादिरादीमूठे मनोमुकरे बर्णनीय तम्मपी
'मबसयोस्यवा हे इदपर्सदाइशाड सइदया' । तितु काप्पार्ुप्ीपम क एतत
प्रम्यास द्वारा मनमुदुर को विशदीभूत करते का भदकास रौतिगालोन
सहुष्मोषाषहौ ! बे काम्य को 'बामत्वारिकि सक्तियों में हो रस का पगुमण
करते थे । बिहारी के 'रसिक' की पतििवि का निरीक्षण हमारे सलम्प को
भौर थी स्पप्ट कर देगा--
द्धि शु चरदत सटगि-बिभु, रति, सु रस न, लिपाक ।
गत अझषत भि बित दितजु लित॑ सकुचत कत, लाल ॥
पष पर रनाष्रयी को टिपिभी देलिप्-
शापिता नायक भो परम्य सविया $ घाप हुसत बोलते देतकर बुए इप्ट
हुई है, जिस पर लायक भे चससे बहा हैँ कि ठनस््पेमे बु प्रेम संबंघ
से बातचीत सही करता था प्रत्यू केदल घामाएं प्रमोद से उलम्य था । यह
बडहते समय सापक का सन प्रपती बताबरी बात पर बुद सबुचित हुपा ।
पहुं संदौच उमयी अप्टा से लक्षित करक एवं सचष्णों जात सिर्धाण्ति बरके
माधिका कहती है--
१ एमि! (पुम) जो रमिः (चेमौ बार प्रम के प्रमाद )
सिना पटलं ( प्य स्त्रियां से उसमे ) फिरने हो ( बहू परषता ) रस
नहीँ है ( परम के बारण सही है ) प्रायुव 'खियास' ( कितदाढ़ मातर)
है हू लाल [ पदि तुम्हारा यह कपन सब है घोर तुम भपरापो नहीँ इ हो
फिए तुम पट थवलामों कि लित ] नि ( निएपय्रति ) परत” पलत
( भम्य पम्प स्त्रिया है: ) हितों से वित्त में संबुधित कर्यी हाते हो [ दे हिग
१ हा देवएाल हंस्टतिका दारांजिद दिवेवय प्रादय नूरो ष्च ब्रेट
¶५१५०॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...