हिंदी गद्य - काव्य | Hindi Gadh Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अप्याय गद्य-काठ्य की परिभाषा गय-काव्य श्राधुनिक हिन्दी-साहित्य का एक विशिष्ट श्रौर महवपूणं श्रग माना जाता है । उसके स्वरूप को समभाने के लिए संस्कृत-साहित्य की परम्परा को देखना झावश्यक है; क्योकि हिन्दी-साहित्य ने संस्कृत का संस्कृत में गय-काव्य उत्तराधिकार प्राप्त किया है श्रौर उसके विविध रूप संस्कृत का स्वरूप से प्रभावित हुए हैं । गद-काव्य भी इसका श्रपवाद नहीं है | संस्कृत मे उसका भी विस्तृत-विशद परिचय मिलता ई] उसकी शास्त्रीय व्याख्या भी उपलब्ध है] शत: सवप्रथम सस्कत में गद्य-काव्य के स्वरूप पर विचार करना होगा । उसके पश्चात्‌ ही आधुनिक हित्दी-गद्य-काव्य से उसका मेद स्पष्ट करके आधुनिक दट्विन्दी-गद्य-काव्य की उपयुक्त श्र पूण परिभाषा का प्रयत्न किया जा सकेगा | सरकृत-सा हित्य में गय, पथ ग्रौर चम्पू--इन तीनों प्रकार की रचनाओं को काव्य के श्न्तगंत माना गया रै) दन्दोचद्ध पदको प्य कदा गया है ।* गय शोर पद्य से युक्त रचना को चम्पू का नाम दिया गया है ।* गद्य चार प्रकार का माना गया ईै--सुक्ताक, इत्तगस्थि, उत्कलिकाधाय, आर चूणक । पहला समास-रहित होता है, दूसरे में पद्य के अंश रहते हैं, तीसरे में दीघ समास रहते हैं द्रोर चौथे मे छोटे छोटे समास र्द्ते हैं ।१ इसके साथ ही गद्य-काव्य के दो भेद किये गए हैं--* कथा प्रर २ श्राख्यायिका ) कथा वह्‌ ई जिसमे सरस वस्त॒ गय मे निबद्ध टो | इसमे करी कहीं श्राया कन्द शरोर करहीं-करदीं चक्च तथा श्रपवक्च छन्द द्योते है| प्रारम्भ से पचमय नमस्कार तथा खलादिको का चरित निवड होता है| जेसे कादम्बरी | श्राख्यायिका १. छन्दोवद्ध पदं पद्यं 1 (साहित्य दपण, पष्ठ ३२२ । २ गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पुरिव्यभिषीयते 1 वही, पृष्ठ ३२६ । ३ वृत्तगन्धोज्िति गद्यं मुक्तकं वृत्तिगन्धि च । भवेदत्फलिक्रा प्रायं. चूर्णकं चतुविघम्‌ ॥\ ध्ाद्यं समास रहितं, वुत्तभागयुतं परम्‌ 1 प्रय दोघं समासाद्य, तुर्यं चत्यसमम्‌ । वही, पृष्ठ ३२५ ।




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