हिंदी गद्य - काव्य | Hindi Gadh Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अप्याय
गद्य-काठ्य की परिभाषा
गय-काव्य श्राधुनिक हिन्दी-साहित्य का एक विशिष्ट श्रौर महवपूणं श्रग
माना जाता है । उसके स्वरूप को समभाने के लिए संस्कृत-साहित्य की परम्परा को
देखना झावश्यक है; क्योकि हिन्दी-साहित्य ने संस्कृत का
संस्कृत में गय-काव्य उत्तराधिकार प्राप्त किया है श्रौर उसके विविध रूप संस्कृत
का स्वरूप से प्रभावित हुए हैं । गद-काव्य भी इसका श्रपवाद नहीं है |
संस्कृत मे उसका भी विस्तृत-विशद परिचय मिलता ई]
उसकी शास्त्रीय व्याख्या भी उपलब्ध है] शत: सवप्रथम सस्कत में गद्य-काव्य के
स्वरूप पर विचार करना होगा । उसके पश्चात् ही आधुनिक हित्दी-गद्य-काव्य से
उसका मेद स्पष्ट करके आधुनिक दट्विन्दी-गद्य-काव्य की उपयुक्त श्र पूण परिभाषा का
प्रयत्न किया जा सकेगा |
सरकृत-सा हित्य में गय, पथ ग्रौर चम्पू--इन तीनों प्रकार की रचनाओं को
काव्य के श्न्तगंत माना गया रै) दन्दोचद्ध पदको प्य कदा गया है ।* गय शोर
पद्य से युक्त रचना को चम्पू का नाम दिया गया है ।* गद्य चार प्रकार का माना
गया ईै--सुक्ताक, इत्तगस्थि, उत्कलिकाधाय, आर चूणक । पहला समास-रहित होता
है, दूसरे में पद्य के अंश रहते हैं, तीसरे में दीघ समास रहते हैं द्रोर चौथे मे छोटे
छोटे समास र्द्ते हैं ।१ इसके साथ ही गद्य-काव्य के दो भेद किये गए हैं--* कथा
प्रर २ श्राख्यायिका ) कथा वह् ई जिसमे सरस वस्त॒ गय मे निबद्ध टो | इसमे करी
कहीं श्राया कन्द शरोर करहीं-करदीं चक्च तथा श्रपवक्च छन्द द्योते है| प्रारम्भ से पचमय
नमस्कार तथा खलादिको का चरित निवड होता है| जेसे कादम्बरी | श्राख्यायिका
१. छन्दोवद्ध पदं पद्यं 1 (साहित्य दपण, पष्ठ ३२२ ।
२ गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पुरिव्यभिषीयते 1 वही, पृष्ठ ३२६ ।
३ वृत्तगन्धोज्िति गद्यं मुक्तकं वृत्तिगन्धि च ।
भवेदत्फलिक्रा प्रायं. चूर्णकं चतुविघम् ॥\
ध्ाद्यं समास रहितं, वुत्तभागयुतं परम् 1
प्रय दोघं समासाद्य, तुर्यं चत्यसमम् । वही, पृष्ठ ३२५ ।
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