संक्षिप्त जायसी | Sankshipt Jayasi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शम्भूदयाल सक्सेना - Shambhudayal Saxena
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
फिरहिं पाँच कोतवार सुर्भोरी ।
काँपे पाँव चपत वह पौरी॥
कनक-सिला गदि सीढ़ी लाई
जगमगाहु गढ़ ऊपर ताई' ॥।
नवौ खंड नव पौरी आओ तहूँ बजू-केवार ।
चारि बसेरे सौं चद, सत सों उतरे पार ॥५॥
नव पोरी पर दसवें दुबारा,
तेहि पर बाज राज-घरियारा ॥
घरी सो बेठि गने घरियारी।
पहर पहर सो झापनि बारी ॥।
जबहीं घरी पूजि तेहिं मारा ।
घरी घरी घरियार पुकारा ॥।
परा जो डॉड़ जगत सब डॉड़ा ।
का निचित मादी कर भाँड़ा ? ॥।
तुम्ह तेहि चाक चढ़े हो काँचे ।
आण्ड रहै, न थिर होइ बाँचे ॥।
घरी जो भरी घटी तुम्दद आऊ।
का निचिंत होइ सोउ बटाऊ ? ॥
पहरि पहर गजर निति होई।
हिया बजर, मन जाग न सोई ॥
मुहमद् जीवन जल भरन रर्हैट घरी के रीति।
घरी जो राई ज्यों भरी, ठरी, जनम गा बीति ॥६॥
पुनि चि देखा राज-दुश्मारा ।
मानुष प्ठिरहि पाड नहि बारा॥
हस्ति सिघली बोधि बारा)
जनु सजीव सब ठाढ़ पहारा ॥।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...