सात इनकलाबी इतवार भाग - 1 | Saat Inakalabi Itavar Bhag- 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सात इनकलाबी इतवार भाग - 1  - Saat Inakalabi Itavar Bhag- 1

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नारायणस्वरूप माथुर - Narayanasvarup Mathur

Add Infomation AboutNarayanasvarup Mathur

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२ ७ सात इनक़लाबी इतवार * श्रघेय्यं का चिह्न नदीं है| रेखा ललित विनोद मेरे लिए नीं है। मेरे सष्टा--इस पुस्तक के लेखक-ने मे एक पंषारी के चाकर से अधिक कुछ बनाया ही नहीं । पन्ने फाड़कर पढ़ने का एक कारण तो यदह दै किं कभी-कभी में कमरे में पड़ा-पड़ा ऊब उठता हूँ ; लेकिन एक वजह ये भी है कि में नवयुवक सामर का मित्र हूँ जो समाचार-पत्रों में लेख लिखा करता है ; इसीलिए, मेरे लिए यह जानना श्रावश्यक हो जाता है कि सरटोरियस श्र वीरियाथस कौन थे श्रौर जिसमें मैं उनके बारे में बातचीत करसं | केवल इसी कारण कि वह मुमसे शधिक जानकारी रखता है उसकी हाँ में हाँ मिलाने को इमेशा विवश रहना मुझे सख्त नापसन्द है । दीवार पर, कैलंडर से सटा दृश्या, सीलन ने एक देत्य-सा घब्बा बना द्या हे । उसको देखकर सुकते गोया के स्मारक पर बनी हुदै डाकिनियों का स्मरण हो श्राता है। ६, ११ शरोर ४६ नम्बर की ट्रामगाड़ियाँ ठीक बाहर दी सकती हैं। में अकसर बाहर के चयूतरे पर ही गश्त लगाया करता हूँ श्रव्वलन तो इसलिए कि युके कोद बात करने को मिल जाता है--क्योकरि अन्दर लोग बातचीत नहीं करते--श्रौर इस- लिए भी कि मेरे पास श्रक्तर कदन कोड सामान होता है-मसलन एक गलन तेल शरोर दो-चार पड चीनी- श्रौर कंडक्टर मुमको श्रपना सामान मोटर के बराबर रख लेने दिया करता है । एक दिन मे ४६ नं० की गाड़ी पर जा रहा था. जब मेंने सामर को एक बहुत खूबसूरत नवयोवना रमणी श्रौर उसकी संगिनी के साथ जिसे हम लोग वाड़ंस कहते हैं--देखा । इनकी मौजूदगी से वह कार भी फ़र्ट क्लास कोच बन गई थी । लड़की एक अ्रभिनेत्री से मिलती-जुलती थी जिसको मेंने एक बार ठिनेमा में देखा था वद्द संगीत के ताल पर ही भुजाएँ इलाती श्रौर बात करती जान पड़ती थी | सामर सुत्त तथा गंभीर था | मेरी समम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now