अर्ध कथानक | Ardh Kathaanak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है है
खेत-खलिहान इत्यादिकी बातें सुनते-सुनते जनता अघायेगी नहीं । आज
जिसके जीवनकी कथा हमें तुच्छतम दीख पड़ती है वह झत शताब्दियोंफि
बाद कवित्वकी तरह सुनाई पडगी । 2
सन्ध्या बेखा खारि कखि बोद्धा वहि रिरे ।
नदीतीरे परटटीवासी घरे जाय फिरे ॥
शात शताब्दी परे यदि कोनो मते।
मन्त्र बले, अतीतेर म॒त्युराज्य हते ॥
पद्ध चापी देखा देय हये मूतिमान ।
पड खारि कखि टश्ये विस्मित नयान ॥
चारि दिके धिरि तारे असीम जनता ।
काड़ाकाड़ करि खवे तार प्रति कथा॥
तार सुख दुःख यत तार प्रेम स्नेह ।
तार पाड़ा प्रतिवेशी, तार निज गेह ॥
तार श्षेत तार गरु तार चाख वास ।
शुने झुने किछु तेद् मिरिवे न आहा ॥
आजि जोर जीवनेर कथा तुच्छतम ।
स्र दिनि शुनावे तादा कविच्वेर सम !
मान लीजिये यदि आज हमारी मातृमाषाके बीस पच्चीस लेखक
विस्तारपूर्वक अपने अनुभवोंको लिपिबद्ध कर दें तो सन् २२४३ इंस्वीमें वे
उतने दी मनोरंजक और महत्वपूर्ण बन जावेंगे जितने मनोरंजक कविक्र
बनारसीदासजीके अनुभव हमें आज प्रतीत हो रहे हैं । ग़दरको हुए अभी
बहुत दिन नहीं नहीं हुए । अभी हमारे देशमें ऐसे व्यक्ति मौजूद हैं जिन्होंने
सन् १८५७ का गदर देखा था । इस गृदरका आँखों देखा विवरण एक
महदाराष्ट्यात्री श्रीयुत विष्णु भटने किया था और सन् १९०७ में सुप्रसिद्ध
इतिहासकार श्री चिन्तामण विनायक वैद्यने इसे लेखकके वंशजोंके यहाँ पड़ा
हुआ पाया था । उन्होंने उसे प्रकाशित भी करा दिया । उसकी मूल प्रति
पूनाके ' भारत इतिहास संदोधक मंडल ' में सुरक्षित है । जब विष्णुभटको
पूनामे यह ख़बर मिली कि श्रीमती बायजाबाई सिंधिया मथुरामे सर्वतोमुख
यश करानेवाली हैं तो आपने मथुरा आनेका निश्चय किया । पिताजीसे आशा
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