विश्वज्योति महावीर | Vishvjyoti Mahaveer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आनद वा अक्षय स्रोत ७ अपना अन्तेदक्षन कराता है } अध्यात्म का मारम्भ स्वको जानन और पाने की बहुत गहरी जितासा स होता हैं. और अन्तत 'स्व' वे पूण बोध मं, म्व दो पुण उपलब्धि म इसकी परिसमास्तिहै। अध्यात्म दिसो विनष्ट पथ या मप्रदाय बौ मान्यत्ताभआमं विवेकून्य अधविश्वाम आर उनका अ-धअनुसरणनही दै 1 दो चार पाँच प्ररपरागत नीति नियमा वा पालन अध्यात्म नेह है वयोविं यहं अमुकं क्रियाकाण्डा कौ अमुक विधिनिपधां कौ कोट प्रदणनी पही है और न यह कोरईदेण धम ओर समाज कौ दश-बालानुसार बदलतों रहन वाली व्यवस्था का काई रुप है । यह एवं आन्तरिवा प्रयोग है जा जीवन को सच्चे एव अविनागी सहज आनद स भर देता है 1 यहे एक ऐसी प्रश्रिया है जा जीवन वो गुभागुभ वे बधनो से मुक्त वर दती है स्व फी शक्तिको विघटित होने से वचाती है। अध्यात्म जीवन कौ लगुभ गक्तिया का शुद्ध स्थिति से सूपान्तरित करने वाला अमोघ रमायन है अत यहु मतर्‌ कौप्रमुप्त विनुद्ध नक्तिया ष प्रवुद्धक्सनेका एक सफल आयाम है! अध्यात्मका उद्दश्य भौचित्य की स्थापना मात्र नही है प्रत्युत शाश्वत एव गुद जोवन के अनन्त सत्य को प्रकट बरना है। अध्यात्म कोरा स्वप्तिल माद नही है । यह तो जीवन का वह जीता जागता यथाथदहै जो स्व को स्व पर वेड्धित करने का निज का निज म समाहित करने दा पथ प्रशस्त करता है । अध्यात्म का धम से अलग स्थिति इसलिए दी गई हैं दि आज का घम कारा न्यवहार बन कर रह गया हू वाह्याचार के जगल मे भटक गया हू , जवकि अध्यात्म अब भी अपने निदचय कै गथ पर समाहुद ह। यवहार वहिमु ख हाता हैं और निश्चय अन्तमु ख । अन्तमुख अर्थात स्वाभिमुख । अध्यात्म का सर्वेसर्वा स्व हु-- चैतय हु। परम चतन्य के शुद्ध स्वरूप की जप्ति और प्राप्ति हो अध्यात्म का मूल उदक्य हू। तएव अध्यात्मे जोवन कौ एक अत्यन्त मरच्वपूण भावात्मक स्थिति हं निपेधात्मव नहा 1 परिभाषा की सपिप्त भाषा म कहा जाए तो अध्यात्म जीवन कं स्थायी मुल्य




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