मानक हिन्दी कोश भाग - 4 | Manak Hindi Kosh Bhag - 4

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Manak Hindi Kosh Bhag - 4  by बाबु रामचन्द्र वर्म्मा - Babu Ramchandra Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फरमाइश १० फरमे छप गये हैं, अभी पाँच फरमे और बाकी हैं। ३ छापेखाने मे, ढाचि मे कसी हुई छपनेवाली सामग्री । फरमाइश---स्त्री [फा० फ़र्माइश] १ वह्‌ चीज जिसके लिए किसी ने अनुरोध किया हो । २ किसी काम या बात के लिए दी जानेवाली आजा विदषत प्रेमपुर्वक दिया हुआ आदेश । करमद्वक्षी--वि० [फा०] १ जो फरमाइश करके बनवाया या मंगाया गया हो। जैसे--फरमाइशी जूता । २ फरमाइदा के रूप में होनेवाला । फरमान--पु० [फाण्फर्मान] १. कोई आधिकारिक विशेषत राजकीय आदेश । २. वहु पत्र जिसमे उक्त अदेश लिखा हो) फरमाना--स० [फा० फरमान] कोद बात कहना । (वडो के सबधमे सम्मान-सूचक रूप में प्रयुक्त ) जैसे--आपका फरमाना बिलकुल दुरुस्त है । फरयाद--स्त्री° -फरियाद ) फरयारी ---रत्री ° [हि० फाल] हर मे की वहु लकडी जिसमे फाल (फल) लगा रहता है) स्पी) फरराना{--भ०, स० -=फहुराना । फरलॉग--पु० [अ० फरलाग भूमि की दूरी नापने का एक मान जो २२० गज के बराबर होता है। फरलो--स्त्री०[अ० फरलागं| सरकारी नौकरो के आवें वैतन पर्‌ मिलनवाली लगी छूटी । फरवरी --पु० |अ० फ़ेबुजरी ] अंगरेजी सन्‌ का दूसरा महीना जो अद्ठा- इस दिन। का, परन्तु जौद के वर्ष, उन्तीस दिनों का होता है। फरवार|[--पु० --खलिहान। कफरवारौ ¦ --रत्री० [हि० फरवार 1-ई (प्रत्य०)] उपजे हुए अन्न या फसल का वह्‌ भाग जो किसान खलिह्ान मे से राशि उठाने के समय ब्राह्मण, बटू, नाई भादि को देते है। फरवी--रत्री० [स० स्फूरण | १. एक प्रकार का भूना हुआ चावल जो भुनने पर अन्दर से पोला हो जाता है। मुरमुरा । २ दे० 'लाई' । 'फरुह्दी । फरक्च-पु० [अण फलं] १ बेंटने के लिए बिछाने का कपड़ा। बिछा- वन। २ क्रमर आदि की पबकी आर समतल भूमि जिस पर लोग बंठते है। ३२ समतल प्रसार या फंाव। जैसे-फूर) का फरश। फरदाबद--पु० [फा०| वह्‌ ऊचा नौर समतल स्थान जहाँ गच का फरण बना हो। फरदशी--वि० [अ० फ़र्शी ] १ फरदा-सबधी। फरद का । पद--फरक्ौ सलाम = बादशाह आदि को किया जानेवाला वह्‌ सलाम जिसमे आदमी को इस प्रकार झुकना पड़ता था कि उसका सिर लगभग फरश तक पहुँच जाता था। २. जो फर्ष पर रखा जाता या काम मे लाया जाता हो। जैसे-- फरशी जूता, फरशी झाड़, फरशी हुबका आदि । पद---फरवी गोला _-आतिशबाजी में वह गोला जो फरदा पर पटकने पर भावाजं देता है । स्त्री १ कुछ खुले मुंह का घातु का वह आधान या पात्र जिस पर नैचा मौर सटक लगाकर तमाक्‌ पीते है। २. उक्त पात्र और नैचे, सटक भादि से युक्त हुबका । गुड़गुडी । ३. पुरानी चाल की बढूक का वह अग जिसमें गज रखा जाता था। है करां फरसग--पु० [फा० फर्सग] ४००० गज या सवा दो मील की दूरी का एक नाप । फरस--पु० १ दे० 'फरसा'। र दे० फरशः) फरसा--पु० [स० परशु] १ पेनी और चौड़ी धार की एक प्रकार की कुल्हाडी, जो प्राचीन काल में युद्ध के काम आती थी । २. फावडा। फरसी--वि०, स्त्री० --फरदी | फरहंग--स्त्री [फा० फरहग] दाब्द-कोश । फरहटा† --प० [हि° फाल] [स्व्री° अन्पा० फरहटी ] बस, लकडी आदि की पतली, लबी पट्टी । फरहत--स्त्री [अ० फहूंत] प्रफुल्लता 1 फरहद--१० [स ० पारिभद्र, पा० परिमहु; प्राण पारिहृद्‌] एक प्रकार का वृक्ष जो बगाल में समुद्र के किनारे बहुत होता है। वहाँ के लोग इसे पालितेमदार कहते हैं! फरहर! --वि° [स ० स्फार; प्रा° फार-~अर्ग-अलग, अथवा फरदरा] १ जो एक से लिपटा या मिला हुआ न हो, अलग-अछग हो । जैसे-- फरहर भात। रे साफ। स्पष्ट। दे. निर्मल। शुद्ध। ४ (मन) जिसमें उदासीनता, खेद आदि न हो। प्रफुह्लित । प्रसन्न । ५. चालाक। होशियार। फरहरना--अ०, स०८, [अनु० फरफर)] १.-=फरफराना । २. =फट्‌- राना) फरहरा-पु० [हि० फहराना] १ कपडे आदि का वह्‌ तिकीना या चौकोना टुकड़ा जिसे छड के सिरे पर लगाकर झड़ी बनाते है और जो हवा के झंके से उड़ता रहता है। २ झड़ा। पताका | ¡वि ०-=फरह्र (देखे ) करहराना--अ०, स०--फरहरना । फरहरी} --स्त्री० [हि० फल {हेरा (प्रत्य०) ] वुक्षौके फलया उन्हीं के वर्ग की और चीजे जो खाई जाती हौ । फलहरी। †वि०, स्त्री फलाहारी। उदा०--सुख करिआार फरहरी खाना । --जायसी । फरहा† --पु° [ हि० फल] धुनियो कौ कमान का वह चौड़ा भाग जिस पर से होकर ताँत दौनो सिरों तक जाती है । करहाद--पु० [फा० फर्हादि] एतिहास-प्रसिद्ध एक प्रेमी जिसने अपनी प्रमिका कशीरी के आदंश पर पहाड़ काटकर बहर बनाई थी) कहते है कि किसी कुटनी के धोखा देने पर वहू अपना सिर फोडकर मर गया। फरही। --स्त्री० [हि० फरहा ] लकडी का वह चौडा टुकड़ा जिस पर ठठेरे बरतन रखकर रेती से रेतते हैं । फरा --पु० [देश०] एक प्रकार का व्यंजन जो चावल के आटे को गरम पानी मे गूँथकर और पतली बत्तियाँ बनाकर पानी की भाप में उबालने से बनता है। फशकां -मु० [फा० फराख] है मंदान। २. आयताकार रथान। वि० लबा-चौडा। विस्तृत । पुर [अर फ्राकें] छोटी लडकियों के पहिंनने का अँगरेजी ढंग का एक तरह का लबा पहनावा। फराकत-- ति ० == फराख ) १ आनद। प्रसन्नता। २. मन की




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