अकबरी दरबार भाग - 2 | Akabari Darabar Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
546
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६ )
तुरंत मुनइमखां को भेजा कि सेना ज़ेकर कन्नौज के घाट उत्तर
जाओ । बह यह भी जानता था कि यह मुकाबला किससे है ।
साथ हो वह यह भी समभ गया था कि ये जो लोग भाण
लगाते है ध्रौर सेनापति हाने का दम भरते है, ये कितने पानी
मे हैं। इसलिये चद्द स्वयं कई दिनों तक सेना की तैयारियों
में सबेरे से संध्या तक लगा रहा। उसने भास पालके
ध्रमीरों श्रौर सेनाओं को एकत्र किया ! जो लोग उसके सामने
उपस्थित थे, उन्हें उसने पूरा सिपाही बना दिया था | इस
लश्करमे दस हजार ता कवल हाथो थे। बाको पाठक
झाप ही समभ लें । इतना सब कुछ होने पर भी उसने प्रसिद्ध
यह किया कि दम शिक्षार करने क लिये जा रहे हैं श्र
बहुत ही फुरती के साथ चल पड़ा । यहाँ तक कि जो थोड़े
से लोग खास उसके साथ में थे, वे इतने थोड़े थे कि गिनने
के योग्य भी नथे |
मुनइमखां दरावज़ बनकर श्राग श्राग रवाना हुआ था ।
वह अभी कन्नौज में हो था कि श्रकबर भी वहाँ जा पहुँचा ।
पर वद्द बुड्ढा बहुत ही सुशीत्त और शांतिप्रिय सरदार था ।
वह वास्तव में बादशाह का सच्चा शुभचिंतक श्र उसके लिये
झपनी जान तक निछावर करनेवाला था । वह इस भगड़े
को जड़ को श्रच्छी तरदइ जानता श्रौर समभताथा। उसे
किसी तरह यह ब्रात मंजूर नही था कि लडाई हा; शरैर यह
कईं पीद्वियो। का सेवा करनेवाला व्यर्थ श्रपने शतचरणा के हाये
User Reviews
No Reviews | Add Yours...