अकबरी दरबार भाग - 2 | Akabari Darabar Bhag - 2

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Akabari Darabar Bhag - 2  by बाबु रामचन्द्र वर्म्मा - Babu Ramchandra Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ ) तुरंत मुनइमखां को भेजा कि सेना ज़ेकर कन्नौज के घाट उत्तर जाओ । बह यह भी जानता था कि यह मुकाबला किससे है । साथ हो वह यह भी समभ गया था कि ये जो लोग भाण लगाते है ध्रौर सेनापति हाने का दम भरते है, ये कितने पानी मे हैं। इसलिये चद्द स्वयं कई दिनों तक सेना की तैयारियों में सबेरे से संध्या तक लगा रहा। उसने भास पालके ध्रमीरों श्रौर सेनाओं को एकत्र किया ! जो लोग उसके सामने उपस्थित थे, उन्हें उसने पूरा सिपाही बना दिया था | इस लश्करमे दस हजार ता कवल हाथो थे। बाको पाठक झाप ही समभ लें । इतना सब कुछ होने पर भी उसने प्रसिद्ध यह किया कि दम शिक्षार करने क लिये जा रहे हैं श्र बहुत ही फुरती के साथ चल पड़ा । यहाँ तक कि जो थोड़े से लोग खास उसके साथ में थे, वे इतने थोड़े थे कि गिनने के योग्य भी नथे | मुनइमखां दरावज़ बनकर श्राग श्राग रवाना हुआ था । वह अभी कन्नौज में हो था कि श्रकबर भी वहाँ जा पहुँचा । पर वद्द बुड्ढा बहुत ही सुशीत्त और शांतिप्रिय सरदार था । वह वास्तव में बादशाह का सच्चा शुभचिंतक श्र उसके लिये झपनी जान तक निछावर करनेवाला था । वह इस भगड़े को जड़ को श्रच्छी तरदइ जानता श्रौर समभताथा। उसे किसी तरह यह ब्रात मंजूर नही था कि लडाई हा; शरैर यह कईं पीद्वियो। का सेवा करनेवाला व्यर्थ श्रपने शतचरणा के हाये




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