स्वर्गीय सुमन | Swargiy Suman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ४ |
जदह फूल दै, वद्यो कोर दै, ओर ज्य कमल है वहाँ कीचड्
भी मौजूद है ।. होना भी चाहिए, क्योकि सद्गुो का महच
दुगणों से तुलना करने पर ही जाना जाता है । कडुश्रा खाने
परे हयी मीठे की महिमा. ज्ञात होती है । श्रन्धकार अनित
झड़यनों को देखकर ही प्रकाश-प्रमच सुविधाओं के. महत्व
काबोध होता है । इसी भाँति डुम्ख मोगकर ही मनुष्य
खुख्मे का झादर करता है. । हरिश्चन्द्र, को जहाँ अन्यास्य
ससारिक सुख उपलब्ध थे, वहाँ एक चस्तु का अझमाव खर्देच
खरकता रहता था 1. उनको . रात-दिन इसी बातत का सोच
रहता कि येरे पीछे इस विशाल राज्य का श्रवर्ध-भार कौन
सेमांलेगा ? और पुरुषाओं के लिए पिराड-दान की विधि
किक द्वारा सम्पन्न होगी ? क्या महाराज इदवाङ् का पवित्र
चंश मेरे पश्चात् नष्ट ही. हो जायगा ! |
हरिश्चन्द्र को सन्तान के क्लिप अति सिन्वित देख महिं
वशिष्ठ ने उन्दं पुत्रेषि यज्ञ करने की सम्भति वी! यज्ञ करने
पर राजा का मनोरथ पुणे इथा । उसे एक अति तेजी
स्वरूपवान पुत्र की म्रातति हुई । यथासमय बालक के आति-
कमीदि संस्कार कराये गये ओर श्रनेकः भ्रकार से उत्सव
मचाया गया } रजकृमार का नाम रोषित ८ रोहिताश्व )
रक्खा गया और बड़े लाइ-चाव से उसका लाॉलन-पालन
किया जाने लगा ! कुछ ही दिनों बाद, महाराज हरिश्चन्द्र ने
पक बड़ा भारी यज्ञ किया । इस यज्ञ के आचयाय वरिष्ठ ऋषि
चनाये गये } यञ्च समात्त होने पर वशिष्ठजी तथा छन्य विद्धान्
ज्नाह्मणों को प्रचुर घन-घान्यादि देकर चिदा कियः गया)
हरिश्चन्द्र के कुल-पुरोहित ऋषि. विश्वामित्र थे । पुराणों में
लिखा है कि, विश्वामित्र ने ही उनके पिता जिशंकु को अपने
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