कला और संस्कृति | Kalaa Aur Snskrit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kalaa Aur Snskrit by डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल

Add Infomation About

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
संस्कृति का स्वरूप र करना द्रावश्यक है । देश के प्रत्येक भाग में इस प्रकार के प्रयत्न त्ावश्यक हैं । इस देश को संन्कृति की घारा ग्रति प्राचीन काल से बहती श्राई है। हम उसका सम्मान करते ह, किन्तु उसक्र प्राणवंत तख को अपनाकर ही हम आगे बट सकते हैं । उसका जो जड़ भाग हे उस गुरुतर बोभ को यदि हम टोना चाहें तो हमारी गति मं श्रड़चन उतपन्न होगी। निरन्तर गति मानव जीवन का रदान है । व्यक्ति हो या राट्र, जी एक पड़ाव पर टिक रहता है, उसका जीवन टलने लगता हं । इसलिए; “चरंवेति चरेवेति” की घुन जब तक राष्ट्र के रथ-चक्रों में गूजती रहती है तभी तक प्रगति आर उन्नति होती है; श्न्यथा प्रकाश अर प्राणवायु क कपाट बन्द हौ जाते ह ग्रौर जीवन रध जाता दहै । हमं जागरूक रहना चाहिए; ऐसा न हो कि हमारा मन परकोटा खींचकर ग्रात्मरत्ता की साध करने लगे । पूर्व और नवीन का मेल पूवं ्रोर नूतन का जहाँ मेल होता है वद्दी उच्च संस्कृति की उपजाऊ भूमि है । ऋग्वेद के पहले हो सूक्त में कहा गया है कि नये आर पुराने ऋषि मेनां दही ज्ञनरूपी श्रगिनि की उपासना करत हं । यही च्रमर सय हं। कालिदास न गुप्तकाल की स्वणयुगीय भावना को प्रकट करते हुए लिखा है कि जो पुराना है वह केवल इसी कारण अच्छा नहीं माना जा सकता, ग्रोर जो नया हे उसका भो इसोलिए; तिरस्कार करना उचित नहीं । चुद्धिमान्‌ दोनों को कसौटी पर कसकर किसो एक को अ्पनाते हैं । जो मूठ हैं उनके पास घर की बुद्धि का टोटा होने के कारण वे दूसरों के मुलावे में आरा जाते हैं । गुप्त-युग के ही दूसरे महान्‌ विद्धान्‌ श्री सिंद्धसेन दिवाकर ने कुछ इसो प्रकार के उद्गार प्रकट किष थे--“जो पुरातन काल था वह मर चुका । वह दूसरों का था, श्राज क] जन यदि उसको पकड़कर बैठेगा तो वह भी पुरातन की तरह ही मृत हो. जाएगा | पुरान समग्र के जो विचार हैं वे तो अनेक प्रकार के हैं । कौन ऐसा है जो भलो प्रकार उनकी परीक्षा किए, बिना श्रपने मन का उधर जनि देगा। जनोऽयमन्यस्य शृतः पुरातनः पुरातनेगेव समो भविष्यति । पुरातनेष्िस्यनवस्थितेषु कः पुरातनाक्तान्यपरी च्य राचय॑त्‌ ¢




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now