भीष्म | Bheeshm
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पटला 1 ७
वरिष्ट--(लगत) पः ! नन्दिनी कटां गै? श्रमी तेमेउसे
यहां दो छोड़ गया था ! वह् खयम् तो ्रा्चम छोड
कर जाने वाली नहीं । ( सवष उपर देख कर ) इधर
_ तो कहीं नद्दी दिस्वाइ पड़ती ।' “श्रीह ! अब में
समभा! झवश्य यह किसी दुष्ट की छुलना है । अच्छा
देखू तो । ( अंखिं बन्द करके कुछ कण परचात ) दुष्ट,पापी
कुकर्मी,दयोवसु,द्योबखु,मेरे साथ ऐसा दुष्यवहांर--
एेसा झत्याचार !!
श्रा स्मीकेवश ऐसा कि कर बेठा यह खोटा काम |
न कुछ भी मेरा भय माना न सोचा झपना कुछ परिणाम ॥
झोह ! तू इतना निडर; इतना ढीठ !! सें समझा |
काम क्रोध ने इन वखुशो की सुमति पर परदे डाल
दिये हैं । ये इतने मदांध हो गये हे-अझहंकार में
इतने . भर गये हैं, कि इनमें विवेक नहीं रहा । यदि
इनका श्रभिमान चर न किया जायगा तो इनका
साहस बढ़ जायगा । श्च्छा, दुष्टो, ( दाथ में जल लेकर
में तुस्ह शाप देता हूं कि तम,मत्युलोक में जन्म
लेकर जीवन मरण का डुःख भोग | |
( खात वसुश्रौ का प्रवेश )
सब--जाहिमाम, आाहिमाम, सुनिवर जाहिमाम ।
' बशिष्ट--जाशओ । दुष्टों, कम्मो का फल भोगो ।
सय---ज्ञमा, नाथ त्तमा । |
वशिष्ट-श्रखम्भव ! मेरा शाप पूरा होकर श्देगा । `
(सब जात है )
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