हज़रत मोहम्मद और इस्लाम | Hajrat Mohammed Or Islam

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Hajrat Mohammed Or Islam by विश्वम्भरनाथ शर्मा - Vishvambharnath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरवों का रदन सहन ७ बरसों उसकी क़त्र के आस पास संडराती रहती है, और “ओरस्कूनी ! ओस्कूनी !” चिल्लाती रदती है, जिसका मतलव है---“मुमे पीने को दो ! मुझे पीने को दो ! और जब तक मारने वाले कान उसे पीने को खून मिले और हत्या का वदलान लिया जवे, तव तक वह इसी तरह चिल्लाती रहती है। इसी लिये अपने क़बीले के किसी आदमी या किसी पुरखे की हत्या का बदला लेना हर अरब अपना धर्म सममता था । इन घरेलू लड़ाइयो में जो मद औरत या वच्चे क्रेद कर लिये जाते थे वे गुलामों की तरह रखे जाते थे। गुलामों के साथ इन लोगों का सलक वहुत ही घुरा था। जानवरों की तरह वाज्ञारों मे वह वेच जाते ये ! किसो गुलाम को मार डालने की कहीं कोई सज़ा न थी। गुलाम ओरतों को अकसर नाचना गाना सिखाया जाता था और फिर उनके साथ चाज़ारी ओरतों खा तदि होता था और कभी कभी इनका मालिक उनसे पेशा करा कर पैसा कमाता था। ऐसी हालत में अलग अलग कबीलो मे प्रेम, मेल या एके की आस करना ओर भी कठिन था । ओरतो के साथ तब के अरबो का वर्ताव बहुत सराब था। पुराने राजपूतो की तरह उस ज़माने के अरब किसी को ऋपना दामाद मानना, या लड़की का वाप होना अपन लिये बहुत बड़ी शर्म की बात समभने थे। लड़कियों को जिन्दा মাত ইন জা




User Reviews

  • Zuber

    at 2019-11-06 18:28:25
    Rated : 10 out of 10 stars.
    कुछ त्रुटियों को छोड़कर इस कितांब को बहुत बेहतर कह सकते है।। धयनवाद लेखक को और आपको भी की अमूल्य पुस्तक हम तक पहुंचाई।
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