भीष्म | Bheeshm

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Bheeshm by विश्वम्भरनाथ शर्मा - Vishvambharnath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पटला 1 ७ वरिष्ट--(लगत) पः ! नन्दिनी कटां गै? श्रमी तेमेउसे यहां दो छोड़ गया था ! वह्‌ खयम्‌ तो ्रा्चम छोड कर जाने वाली नहीं । ( सवष उपर देख कर ) इधर _ तो कहीं नद्दी दिस्वाइ पड़ती ।' “श्रीह ! अब में समभा! झवश्य यह किसी दुष्ट की छुलना है । अच्छा देखू तो । ( अंखिं बन्द करके कुछ कण परचात ) दुष्ट,पापी कुकर्मी,दयोवसु,द्योबखु,मेरे साथ ऐसा दुष्यवहांर-- एेसा झत्याचार !! श्रा स्मीकेवश ऐसा कि कर बेठा यह खोटा काम | न कुछ भी मेरा भय माना न सोचा झपना कुछ परिणाम ॥ झोह ! तू इतना निडर; इतना ढीठ !! सें समझा | काम क्रोध ने इन वखुशो की सुमति पर परदे डाल दिये हैं । ये इतने मदांध हो गये हे-अझहंकार में इतने . भर गये हैं, कि इनमें विवेक नहीं रहा । यदि इनका श्रभिमान चर न किया जायगा तो इनका साहस बढ़ जायगा । श्च्छा, दुष्टो, ( दाथ में जल लेकर में तुस्ह शाप देता हूं कि तम,मत्युलोक में जन्म लेकर जीवन मरण का डुःख भोग | | ( खात वसुश्रौ का प्रवेश ) सब--जाहिमाम, आाहिमाम, सुनिवर जाहिमाम । ' बशिष्ट--जाशओ । दुष्टों, कम्मो का फल भोगो । सय---ज्ञमा, नाथ त्तमा । | वशिष्ट-श्रखम्भव ! मेरा शाप पूरा होकर श्देगा । ` (सब जात है )




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