आनन्द सागर | Anand Sagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ॐ आनन्द सांगर के &
कमो ० ॥ महा विषयान कीन्हे नेन जाके लाला ३ । दषएटन के
नासिवे को तीजे नेन ज्वाला है ॥ सोच ना करोरे० ॥ देवी को
सहाय तेरो सेषफ़ निणडा है । शेदी मेश सामी जाके मले
युश्डमालां है ॥ सोवना करोर मनमें० ॥
) भास्वरी ॥
मू भुकि ममक कदेव श्टिप तर सि सियार ूते॥
॥ पे ॥ जन दुख दप्रनी मन भ्रिपर पूरणी श्री सपयक्जे ॥॥
वन प्रमोद उर मोद देन सति नानां तर फूसे । चन्दन चम्यक
कः चपेशवी ससि रति परति भूले ॥२॥ गुलाबांत गुलाब कर्द
सुगंधे र तर नहि तूले । उपि उमहि घन गर्जत सुन्दर
' बहम भ्रनुकृते ॥ २॥ पणि मदि बर इन? दिते भूत
८
मन पले । कुम सिंगार कलित श्री सियपिय हंसत अपर
मूके 9 गाप मुलावे सम मुषि सजनी लति युनि भन
इले । उ? आनन्द भीं स सजनी घुषि बुधि स मृते ॥५।
को पणें जवि छविं पर पनी नहि चिभरुवन ते । रमनाययर्थं
स्षामि श्यापरो सक्के मन तूते॥६॥
॥ सारं ॥
जगतत जगत जगत जननि जन & नन्द्नी ।ध्रु०।
परसा चरणारविन्द हस्त षएकल दुः दन्द ।
ना यृत मन भन्द् फल्द वेद वेदनी ॥ जगत ३० ॥१॥
, रुचिर मोति भाल जाल राजित इति अति विशाल ।
यंत्र ज्योति होति चपज दत मजनी ॥ जगत३० ॥२॥
कर्ण फूल देति मूर जमम् मर्ण दग्ण शूल ।
अलप मतक मधुश चति कोटि मजनी ॥ जगत३०॥३॥
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