आनन्द सागर | Anand Sagar

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Anand Sagar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ॐ आनन्द सांगर के & कमो ० ॥ महा विषयान कीन्हे नेन जाके लाला ३ । दषएटन के नासिवे को तीजे नेन ज्वाला है ॥ सोच ना करोरे० ॥ देवी को सहाय तेरो सेषफ़ निणडा है । शेदी मेश सामी जाके मले युश्डमालां है ॥ सोवना करोर मनमें० ॥ ) भास्वरी ॥ मू भुकि ममक कदेव श्टिप तर सि सियार ूते॥ ॥ पे ॥ जन दुख दप्रनी मन भ्रिपर पूरणी श्री सपयक्‌जे ॥॥ वन प्रमोद उर मोद देन सति नानां तर फूसे । चन्दन चम्यक कः चपेशवी ससि रति परति भूले ॥२॥ गुलाबांत गुलाब कर्द सुगंधे र तर नहि तूले । उपि उमहि घन गर्जत सुन्दर ' बहम भ्रनुकृते ॥ २॥ पणि मदि बर इन? दिते भूत ८ मन पले । कुम सिंगार कलित श्री सियपिय हंसत अपर मूके 9 गाप मुलावे सम मुषि सजनी लति युनि भन इले । उ? आनन्द भीं स सजनी घुषि बुधि स मृते ॥५। को पणें जवि छविं पर पनी नहि चिभरुवन ते । रमनाययर्थं स्षामि श्यापरो सक्के मन तूते॥६॥ ॥ सारं ॥ जगतत जगत जगत जननि जन & नन्द्नी ।ध्रु०। परसा चरणारविन्द हस्त षएकल दुः दन्द । ना यृत मन भन्द्‌ फल्द वेद वेदनी ॥ जगत ३० ॥१॥ , रुचिर मोति भाल जाल राजित इति अति विशाल । यंत्र ज्योति होति चपज दत मजनी ॥ जगत३० ॥२॥ कर्ण फूल देति मूर जमम्‌ मर्ण दग्ण शूल । अलप मतक मधुश चति कोटि मजनी ॥ जगत३०॥३॥ ६




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