रगनाथ रामायण | Rangnath Ramayan

Rangnath Ramayan by श्री ए. सी. कामाक्षी राव - Shree A. c. Kamakshi Rav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जम ( ई२ )) समादूत रहा । उत्तर-भारत के कुछ राजाओं न जैनधर्म को भी अपनाया था । धीरे- धीर इन दोनों धर्मों न अपनी विजय-पात्रा सदूर दक्षिण तक बढ़ाई । दक्षिणापथ के कई राजाओं ने इस धर्म के आगे अपने घटने टेक दिये। आंध्र-राजाओं में सबसे प्रथम शातवाहन थे, जिन्होंने वैदिक धर्म के अनुयायी होते हुए भी बौद्ध तथा जैन धर्मों का आदर किया । इन्हीं श्ञातवाहनों के सामंत इक्ष्वाकु-वंश के राजा (ई० पु० २०० ) बौद्धघर्म के अनुयायी बने । इन्होंने बौद्ध तथा जैन धर्मों को बहुत आदर दिया और चेदिक' धर्म के प्रभाव को नष्ट करने का भी यथाशक्ति प्रयत्न किया । इस प्रकार, दक्षिण ' भारत में वंदिक, बौद्ध एवं जन घर्मों के बीच कई दाताब्दियों तक संघर्ष चलता रहा। बोच-बोच में ऐसे आंध्र-राजा भी हुए, जिन्होंने वेदिक धर्म को प्रोत्साहन दिया और बौद्ध तथा जन धर्मों को समूल नष्ट करने का प्रयत्न किया। सन्‌ ८२४५ ई० में शंकराचार्य का आविर्भाव हुआ । उन्होंने बौद्धघमं के प्रचार को रोकने तथा . वैदिक धमं को पुनः प्रतिष्ठापित करने का जो प्रयत्न किया, उससे भांप्र-प्रददा के वदिक धर्मावलंबियों को आंध्र-देश से बौद्धघर्म को समल उखाड़ फेंकने गे प्रेरणा सिली। उन्होंने कई मोचों पर बौद्धघर्म का विरोध किया । बौद्धघर्मावलंबियों को. तरह-तरह की यातनाएं दी गई और कई ऐसे ग्रन्थों के निर्माण का प्रयत्न हुआ, जिनके द्वारा वेदिक धमं तथा उनके समथेक पुराणों की प्रतिष्ठा बढ़ी । वातावरण भी :... इसके लिए अनुकूल था । उसी समय तसमिल-देद में अनेक वेष्णव तथा दोव संतों का भाविरभाव हुआ, जिन्होंने अपनी सरस एवं सबल रचनाओं से बौद्ध तथा जैन धर्मों का विरोध आरंभ किया । उसी युग में आंध्र में राजराज नरेन्द्र नामक एक विख्यात राजा हुए नो वैदिक धर्म के अनन्थ अनुयायी थे । इन महापुरुषों का प्रोत्साहन पाकर तेलुगु-साहित्य में पुराण-पुग प्रारंभ हुआ, जिसमें प्रधानतया पुराणों और इतिहासों का अनुवाद-कार्य हुआ । इन ग्रत्थों की रचना करने से॑ कवियों का उद्देदय यहीं था कि उनके द्वारा भगवान के उस लोकरंजनकारी रूप की अभिव्यक्ति की जाय, जिसको आलंबन मानकर मानव- डी हृदय वदिक. धरम के कल्याण-सागं की ओर अपने आप आकृष्ट हो सके । लगभग ' सन्‌ १०२४५ ई० सम कवि नया ने महाभारत का अनुवाद प्रारंभ किया, किन्तु वे सहा- भारत के केवल ढाई पवे-मात्र की. रचना कर पाये थे कि उनका स्वगंवास हो गया। इसके पदचातू तलगु-रामायण (रंगनाथ रामायण) की रचना हुई । पा मर क पि तलूगु स रामायण की रचना. को प्रेरणा देनेवाली परिस्थितियाँ तुलसी-रामायण ं रचना के लिए प्रेरणा देनेवाली परिस्थितियों से भिन्न थीं। रंगनाथ रामायण का उद्देश्य... कक घमें की प्रतिष्ठा को बढ़ाना तथा रासचन्द्र जैसे अलौकिक शक्तिदाली एवं सौंदये- व्यक्ति तथ के. भव्य चरित्र को प्रस्तुत करना. था, जिसकी अनभति




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