अरविन्द मन्दिर में | Arvind Mandir Men

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Arvind Mandir Men  by देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ | 2००6-० सारी वस्तुओं जो सत्य है, उसकी ओर अन्तम बाह्य शरीर पर्यन्तकी लिंद्धि हमें चाहिये। ऽप ?601त अथोत्‌ शुद्ध अन्तःकरण पहले ्रह्माण्डपर ठददरानेसे वां नवीन शान, चिन्ता और इन्द्रियाँ पय॑न्त स्पष्ट दो जाती हैं ; किन्तु त्रह्माण्ड ही उसे स्थित रहने देनेसे दम वर्दी जितनी देर रहेंगे, उतनी हो देर सब कुछ रहेगा, पीछे नहीं । इसीसे दमारे पूर्वज -समाधिके ऊपर इतना अवलस्बित रदते थे । वे समकते थे कि इपृछाधाशाधि1 शा को पदले आध्यात्मिक समधघरा- तलपर कुकाना चादिये, उस जगदसे नये यन्त्र और सूदम इन्द्रियोंकी उत्पत्ति दोती है। वास्तव्म यद नवीन सष्टि है-- अन्तरगेन्दरिया वाद्ये न्द्रियोंकी सद्दायता वना दी दशन, स्पशेन करने छगती हैं । विज्ञय (6००१०७९) पूणं ओर वास्तविक (ऽप ०811081) 'नहीं होगी, जबतक कि शारीर तककां रूपान्तर नहीं हो जायगा; किन्तु इसका अथं यद नद्यं दै फ्रि शरीरकी सूत्तिका -वरिव्तन दो जायगा, बर्कि यह अर्थ दै कि सब कार्य -वदर जायगा । उस सखभ्रय शरीर अस्तमय दो जायगा ओर 'उसमें रोग इस्यादि भी बिलकुछ दी नहीं रहेगा। सेत्र जिस




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