खड़ी बोली कविता में विरह - वर्णन | Khadi Boli Kavita Me Virah Varnan

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Khadi Boli Kavita Me Virah Varnan by डॉ. रामप्रसाद मिश्र - Dr. Ramprasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~< = --- ----- <~ ----~ काव्यं प >> = = [न ऐड हिना का वात्तिल्य रस से संबद्ध काव्य प्रथम करट का ठ; [जनके प्ररक न्द्र से = व चिकना र दल पश्य वव अ दात्सत्य: कक न कम अनिवार्य नून्दास हूं । स्वाभाविकता एव ।चिन्मयता उच्च काट के वात्सल्यन्वणन के अनिदाय नस स ~~ वात्ल्यं वर्मन य > > ---~ = पष्टनम न्प = सिर = तत्व ट्‌ । नर्‌ क वात्तल्य-उगाच मय दाना नन्व ब्पन पुर न्प में विद्यमान प ~ = ~~ ड. ह्य 2~-- <~ साहित्य न चिद्ध विद्वान “प्रिया -जीगाम त उम < >= म ठीक नूनन्साहृत्य के चुर्भावद्ध पवद्रान डाक्टर मु चानम बमा ते उक “वात्सल्य रस को पुणण प्रतिप्ठा करने का श्रेय तो सहात्ना सूरदास को ही दिया जा न-प्रेम के श्रलिरशिक्त मित्र प्रेम यन्य द गस-प परेन उनः त्रे = सतान-ध्रम क ्रतिारक्त मितच्र-परमे, सन्यु-प्रम, युदय, ठन -प्रम, उज्वन्‌-प्॑स इत्यादि भौ रन-द्ना तक पहुँच सकने वाल महान नाव ठं 1 उनीसन च चन भनोग जीप अभर्पन्य छ अपने चनम-नुहूद्‌ औआार्यर के देटयदान 'पर यो करूरग न्ने [9 अ दनर्य णि ना दयत 3 ॥ रच्ित हे दै. दानी ने पन मुर मालित के निघन के पब्चात जो विनदंप्रेमटरति णदं कन्न्ता यादगारे-गालिव' में व्यक्त की हैं. “विभावानुभावव्यभिवारि संवोयाव्रसनिप्वत्तिः ' की हृप्टि ने भी रनदना तक पहुँच सकने में-लहज समर्य हूँ । ~ नेमोरियम व श्र = -. यादार 2 2. व्यया लन सन “इन मेम्नेरियम ` श्रौर शयादमारे-गालिठः कां विर्ह्‌-व्यया गक्रिद्ुक हतं के कारण कर्ण रस के अस्तगंत झा जाती ह्‌, नू दलारये स्वे नान क्रा उद्ना अनि ने विच्छिन्न नहीं है । नन्टरन का नास्वीय विविचन उने क्रियं नन के द्रतगेत रद्वा : नूर के छरष्णा करा ब्रजप्रेम वह कस नस के अंतर्गत रखेगा ? हर्सोँध के धीदासा प्रभूति कृप्स-सखाओं का विदयाद मिच-विरह वहाँ क्या स्थान प्राप्त करेगा ? हिंदी का महान भक्ति-काव्य दो रूपों में प्राप्त होता हू । उसका एक रुप संतार की नणभंगुरता पर दुःख प्रकट करते हुये निवृति का स्तवन कनता हू मुक्ति की शरोर ललक भरी हप्टि से देखता है । कितु यह ल्फ मुर त्या परिमा दोनों हप्टियों ने महत्व पुन ग नही | तारे यन्तिकल्यक्ता ˆ माना शष्ट प्रव महत्वपूर्ण ग प्टियों से महत्वपुर्ण नहीं है । हमारे भक्ति काव्य क्रा प्रायः नाना श्रप्ठ एवं महत्व पुर कलेवर ई ~. प्रेम की सब्तियि भावना से बनम्ाणित 2. वेदनानां रम पीर कलेवर ईदवर के प्रति प्रेम की सक्िय भावना से अनप्राणित है, वदना का रन पानं म र गोपिकाओं पर निवृत्ति-मुलक नह । नूर को गोपिकाओं संबर्षों एवं घान-प्र्तिघातों के रस-पान का भारतीय नः साधना 3 साहित्यं ---~ साहित्य ~ आन चिडषतायं = पष्ठ ड 2 १. भारतीय साधना शोर सूर-साहित्य; सूर-साइहित्य को नतिजवतायः पृष्ठ ३९९] २. नादुयशास्त्र (६)




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