हिन्दी भूषण प्रश्नपत्र संग्रह | Hindi Bhusan Prasan Patra Sangrah

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Hindi Bhusan Prasan Patra Sangrah by डॉ. रामप्रसाद मिश्र - Dr. Ramprasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अभ्रपत्न ३े ५ (क) विदूपक राम को एकान्त में उदासीन बेठा देस्स, उनसे सभा में चलकर सिंहासन को सुशोमित करन के छिए प्रार्थना करता है--(दे मद्दारात् | ) नये बादलों क समान नोछ रग वाछे आपडो यहा (इस तरदद एकान्त में) बेठा देख कर मेरा हृदय दुसी दो जाता है, इघलिए अब आप चहिए | यद्द सामने सभा मण्डप रूपी कमछ सुझोमित हो रहा दे, इसके चारों ओर आपकी सेवा क लिए आए अनेकों राजा आऔर सामन्त रूपी भ्रमर गत रह हैं, दरबारी ल्पेग ही इस कमछ की सुन्दर पखुढियों हैं, और यद्द फमछ लक्ष्मी ( विष्णु फी सखी) के रहने फे मन्दिर की तरह सुन्दर है, इस (सभामटप रूपी कमछ) फ फोश फी तरदद (बढ़ों रझ्से) सिंहासन पर (जाप) विराजिये, और भ्रपनी शोभा से विष्णु भगवात के सामि* फमछ मे बैठे श्रद्मा फी शोभा फो भी फीया कर दीजिए । झथवा सीता क राम के प्रति ये विचार एँ +- (माना कि) सलुप्य का /देय रम्मात से कठोर है बिठु जाप है कि यद इतना घोसा भी दे सब्ता है अनुएम प्रेम के कारण शिनका नाम स्वूपों (मीनारों) तथा ग्एति स्वग्मों पर डिसने योग्य है ऐसे झोड़ों में दो दी आदुसी मय में बारही और मद्दादेय तथा इस पर्मी पर सीठा जोर रामौन- इस उक्ति फो सनम देकर भी अथाव इस प्रत्थी पर आपस प्रेमी कट्छारूर भी सुप्त निरष्सधिनी बी कान माह मुर्दज्ा फर दी है। (दा) मेरे रशमी में पहछे मरा इतसा मो बद्राया+ फिर पक शूप्री निन्‍्दा ५ कारण चुसे इतरी दूर पद दियय ) का




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