जीवन धर्म किरन - 4 | Jeevan Dharm Kiran - 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(1 & ) {५ ज़गढ़ हरियाली फ़ैल जाती है, 'असख्य कीडे-मकोड़े पैदा ¦ हो जाते हैं, इस कारण विहार करने में कठिनाई होती दै , और विहार करने से शर्दिसा धमे का उच्च श्नादशै नहीं पल सकता । श्रतएव वर्षा मे उत्पन्न होने वाते जीवों की रक्षा के उद्देश्य से में आज्ञा देता हूँ कि चार महीने एक स्थान पर निवास करना शौर प्रतिसलीनता धरण. करना । प्रतिसन्लीनता धारण कगे का अर्थ है-मन, बचन, फाय को सदा की श्रपेत्ता अधिक रोक कर. तप-संयम अधिक करना 1' + [१ ~ प्रतर चार माम तक पफ स्थान प्र र्ना भगवान्‌ की साघु का फत्तंच्य है। अगर कोई साघु यष चार सास रहना ही है और 'यहा की मिठाई षडी हर भक्त लोग खूब “घणी खमा' करते. हैं, तो दा नो... चर्यों न लूट लें ? और ऐसा सोच 1 और सान-घढाई का. साधन 'आद्ा का श्रौर अपने कत्तव्य ५ वा एवं अधिक सप-सयम या मान घड़ाइई का अतव- ' कहते हैं । चातुमाम के प सक्ता था, उसे चातु- ~ । चातुरमान में श्रधिक से जिन प्राणियो की दया के , प्राद्र दी है, ठन प्राखिों




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