नयी समीक्षा | Nayi Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
331
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थे, जिसमें वे जो चाहें कर सकें, जहाँ चाहे आा-जा सकें । विज्ञान के आाविष्कारों
के फल-स्वरूप सद्यः विकसित उत्पादन के साधनों, कल-कारखानों को भी ऐसे ही
लोगों की श्रावश्यकता थी जो एक सामंत की सम्पत्ति बनकर एक जगह न पढ़े रहें
बल्कि जहाँ भी उनकी झ्ावश्यकता हो, वहाँ उपलब्ध हो सर्कें। श्रौर इस प्रकार
कालान्तर में संसार के बहुत-से देशों से सार्मतशाही हटी श्रौर उसके स्थान पर
पूँजीवाद की स्थापना हुई, जिसने श्रपनी एूव॑वर्ती सभी समाज-स्वनात्रों की भाँति
एक प्रगतिशील शक्तिके ख्पमे इतिहास के प्रांगण में प्रवेश किया; और तभी
पूँजीपति तथा मजदूर की श्रेणियाँ बनीं । पर श्रन्ततः वह प्रगतिशील नहीं रह पाया
और स्वयं प्रतिगामी तथा समाज को पीले ठकेलनेवाला वन गया, क्योकि उसके
चीज में ही दोष था । उसके बीज में भी वही दोप है जो दासप्रथा, स्वामिप्रथा
या सामन्तवाद में था--उत्पादन के साधनों पर कुछ लोगों का स्वामित्व । इसी
को व्यक्तिगत सम्पत्ति (-प्राइवेट प्रॉपर्टी » भी कहते हैं । दासप्रथा, सामंतवाद और
पूँजीवाद सबके बीज में यह व्यक्तिगत संपत्ति का दोष था, इस लिए ये सच
समाज स्वनार्दैः कालान्तर मेँ प्रगति की ग्रवरोधक ओरं प्रतिगामी बन गयीं । इन
सभी समाज रचनाश्रों के मूल में एक ही बात है : सवका श्राधार शोपण है । ये
सभी शोण क प्रकार-मेद हैं, श्ंखलादों के प्रकार-मेद ई । शरस | -
इस प्रकार समाज के विकास पर एतिहासिक रूप से दृष्टि पात करने पर हमे
भली-भाँति शात हो जाता है कि उत्पादन के साधनों के विकास के साथ-साथ
समाज ने विकास करिया है, उन्दी के श्रनुसार भिन-मिन कालों की समाज रचना
' में परिवर्तन श्राया है और भिन्न-भिन्न समाज स्वनाश्रौ में मिन-भिन्न सामाजिक
सम्बन्धो की स्थिति रही है ओर इस प्रकार भिन्न-भिनन सामाजिक संबन्धों में बैँघे
हए लोगों के संधौ ( वर्ग-संधषं ), उनके क्रियाकलापो का प्रभाव तत्ालोन
साहित्य पर भी श्रनिवायं रूप से पदा है । उादन के साधन ही मानव-समाज कै
विकास के मूलम है शरीर वे श्राथिक होते ई, इसीलिए यह कदा गया कि साहित्य
का श्राघार अन्ततः ्रार्थिक होता है ।
- इस विवेचन के उपरान्त यदि हम माक्संवादी आलोचना की को परिभाषा
देना चाह तो करेगे कि माक्संवादी आलोचना साहित्य की वह समाजशास्त्रीय
श्राल्लोचना है जो साहित्य की रेतिंहासिक व्याख्या करते हुए समाज शरोर साहित्य
के न्योन्याश्रय तथा गतिशील सम्बन्ध का उद्घाटन करतो है ओर सचेतन रूप
में समाज को बदलने वलि साहित्य की खषटि की ग्रोर लेखक का ध्यान श्राकर्षित
करती है | ग | ।
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