राम - चर्चा | Ram Charcha

Ram Charcha by प्रेमचंद - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बालकांड ] ७ [ राम-चर्चा শপ । यज्ञ कर रहा हूँ; किन्तु राक्षस लोग उसे अपवित्र करने की कोशिश करते हैं। वह यज्ञ की बेदी पर रक्त ओर हृडिडियाँ फंकते है । मारीच ओर सुबाहु दो बड़े ही विद्रोही राक्षस हैं। यह सारा फ़िसाद उन्हीं लोगों का है। मुझमें अपनी तपस्या का इतना बल है कि चाहूँ तो एक शाप देकर उनकी सारी सेना को जलाकर राख कर दूँ ; पर यज्ञ करते समय क्रोध को रोकना पड़ता हे । इसलिए मै भापके पास फ़रियाद्‌ लेकर श्राया ह| श्राप राजकुमार रामचन्द्र श्रौर लक्ष्मण को मेरे साथ मेज दीजिये, जिससे वह मेरे यज्ञ की रक्षा करें और खन राक्षसो को शिथिल कर द॑। दस दिन में हमारा यज्ञ पूरा हो जायगा | राम के सिवा ओर किसी से यह काम न होगा । राजा दशरथ बड़ी मुश्किल में पड़ गये । राम का वियोग उन्हें एक क्षण के लिए सह्य न था। यह भय भी हुआ कि लड़के अभी अनुभवी नदीं है, डरावने राक्षसो से मला क्या मुकाबला कर सकेंगे। डरते हुए बोले--हे पवित्र ऋषि ! आपकी आज्ञा शिरोधाय है; किन्तु इन अल्प- वयस्क लड़कों को राक्षसों के मुक़ाबले में भेजते मुझे भय होता है। उन्हें श्रभी तक युद्ध-क्षेत्र का अनुभव नहीं है। में स्वयं अपनी सारी सेना लेकर आपके यज्ञ की रक्षा करने चलू गा। लड़कों को साथ भेजने के लिए मुभे विवश न कीजिये, विश्वामित्र ह्‌ सकर बोले- महाराज! श्राप इन लड़कों को अभी नदीं जानते । इनमें शेरों की-सी हिम्मत और ताकत है। मुके पूरा विश्वास है कि ये राक्षसों को मार डालेंगे । इनकी तरफ से आप निडर रहिये 1 इनका बाल भी बाँका न होगा। राजा दशरथ फिर कुछ आपत्ति करना चाहते थे; मगर गुरु वशिष्ठ के समाने पर राजी हो गये । । और दोनों रजकुमारों को बुला- कर ऋषि विश्वामित्र के साथजानेका श्रादेश दिया । रामचन्द्र श्रौर लक्ष्मण यह आज्ञा पाकर दिल में बहुत खुश हुए। अपनी वीरता को दिखाने का ऐसा अच्छा अवसर इन्हें पहले न मिला था दोगों ने युद्ध में जाने के कपड़े पहने, हथियार सजाये और अपनी माताओं से आशी-




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